
महात्मा गांधी
Mahatma Gandhi Birthday : महात्मा गांधी ने हिंदी को जन-जन की भाषा कहा था और हिंदी को राष्ट्र की राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी। गांधीजी ने कहा था, "राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी का प्रयोग देश की प्रगति के लिए आवश्यक है।"
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के 1931 की एक तस्वीर को याद कीजिए। लंदन की सड़कों पर कड़कड़ाती सर्दी में करीब 62 साल का एक व्यक्ति अपने जर्जर शरीर को अपने हाथ से काते गये सूत से बनी खादी से ढके, पैरों में मामूली चप्पल पहने, अदम्य साहस और उत्साह से भरा हुआ, अपने द्वारा गढ़े गए सिद्धांतों को अपने आचरण में जीता हुआ, अजानबाहु, लंबे-लंबे डग भरते हुए, ''भारत के संवैधानिक सुधारों" के संदर्भ में होने वाली उस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए बढ़ा चला जा रहा है। वह कोई और नहीं 20वीं सदी की आंधी थे, जिनका नाम महात्मा गांधी था। गांधीजी को यह ताकत हिंदी और हिंदुस्तानी से मिली। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद पहला आंदोलन बिहार के चंपारण से शुरू किया।
Gandhi himself learned Hindi: मोहनदास करमचंद गांधी 1915 में (Mohandas Karamchand Gandhi) दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उन्होंने आंदोलन की शुरूआत के लिए बिहार के चंपारण (Gandhiji first movement started from Champaran) को चुना। चंपारण जाते समय उनके सामने सबसे बड़ी समस्या भाषा की थी। एक गुजराती इंसान जो बैरिस्टरी की पढ़ाई करने दक्षिण अफ्रीका गया। गुजरात और अंग्रेजी तो आती थी पर हिंदी उनकी राह का रोड़ा बन रही थी। उन्होंने बिहार में कुछ स्थानीय सहयोगियों की मदद से और अपनी लगन से हिंदी सीखी।
गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने से पहले पूरे भारत का भ्रमण किया और पाया कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो पूरे देश को जोड़ सकती है। यही वजह है कि उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात की और पूरे राष्ट्रीय आंदोलन को इससे जोड़ा। आज़ादी के बाद एक विदेशी पत्रकार ने उनसे दुनिया को एक संदेश देने के लिए कहा। इस पर गांधीजी ने कहा कि पूरी दुनिया अंग्रेजी नहीं जानती।
गांधीजी के संबंध हिंदी लेखकों और कवियों से भी बहुत घनिष्ठ रहे। कवि प्रेमचंद ने भी यह स्वीकार किया था कि हिंदी और राष्ट्रीय आंदोलन से उनका जुड़ाव गांधीजी के कारण ही संभव हुआ। गांधीजी जिस हिंदी को लिखते और बोलते थे उसे हिंदी नहीं बल्कि हिंदुस्तानी कहा जाता था। यह उस समय की संस्कृतनिष्ठ हिंदी से अलग थी। उनकी हिंदुस्तानी से आशय हिंदी और उर्दू के मेल से बनी भाषा थी जो सरल और सहज हिंदी थी। महात्मा ने इसी हिंदुस्तानी को संपर्क भाषा के तौर पर इस्तेमाल में लाया और इसी हिंदुस्तानी को उन्होंने पूरे जीवन जीया।
गांधीजी ने हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती भाषाओं में कई समाचार पत्र भी निकाले। उन्होंने हिंदी में दो समाचार पत्र निकाले - नवजीवन और हरिजन सेवक। गांधीजी अपने अधिकांश पत्रों का उत्तर हिंदी में ही देना पसंद करते थे। हिंदी अखबार की सदस्यता एक लाख से ज्यादा लोगों ने ले रखी थी। गांधीजी दोनों अखबारों का संपादन खुद करते थे। गांधीजी ने अपने जीवन में कई किताबें, कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख के साथ ही 35 हज़ार से ज़्यादा पत्र लिखे। गांधीजी अपने अधिकांश पत्रों का उत्तर हिंदी में ही देना पसंद करते थे।
Published on:
01 Oct 2025 07:39 pm
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