आरएसएस (फोटो-IANS)
नागपुर से निकलकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) देश भर में फैल चुका है। संघ के बाग से निकले प्रचारक आज सत्ता के शीर्ष पर काबिज हैं। 100 सालों के सफर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वह सब हासिल किया है, जोकि किसी भी वैचारिक संस्था के लिए एक ख्वाब देखने जैसा है। संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को नागपुर में हुई थी। उस दिन विजयादशमी (दशहरे) का दिन था। संघ देसी कैलेंडर यानी विक्रम संवत के आधार पर आगामी 2 अक्टूबर को स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा।
साल 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की। तब से लेकर अब तक कुल 6 प्रमुख यानी सरसंघचालक बनें। हेडगेवार 1925 से 1940 तक संघ प्रमुख रहे। इसके बाद माधव सदाशिव गोलवलकर ने RSS की कमान संभाली। वह 1940 से 1973 तक संघ प्रमुख रहे। फिर माधुकर दत्तात्रय देओरस ने लगभग अगले 21 सालों तक हिंदुत्ववादी संगठन की कमान संभाली। फिर राजेंद्र सिंह ने 1994 से 2000 तक नागपुर से संघ का संचालन किया। सिंह के बाद क.एस. सुदर्शन ने अगले नौ सालों तक संघ का संचालन किया। 2009 से अब तक मोहन भागवत संघ प्रमुख की भूमिका में हैं।
RSS में संघ प्रमुख के बाद सबसे अहम पद सह-सरकार्यवाह का होता है। वर्तमान में संघ में कुल 6 सह-सरकार्यवाह हैं। ये संगठन के दैनिक संचालन, क्षेत्रीय समन्वय, और विभिन्न विभागों के प्रबंधन में सहायता करते हैं। सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, मुकुंद, अरुण कुमार, रामदत्त चक्रधर, अतुल लिमये संघ में सह-सरकार्यवाह हैं।
आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर के अनुसार, संघ का नेटवर्क देश भर में 83,000 शाखाओं को पार कर गया है। आंबेकर ने कहा, 'जब नागपुर में आरएसएस की शुरुआत हुई थी, तब शाखा में केवल 17 सदस्य थे। अब देश भर में 32,000 साप्ताहिक बैठकों के अलावा हमारी 83,000 से ज़्यादा दैनिक शाखाएं हैं'।
संघ की स्थापना के 7 महीने हो गए थे। डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने 17 अप्रैल 1926 को अपने घर पर एक बैठक बुलाई। इसमें 26 स्वयं सेवक पहुंचे। हेडगेवार ने इस मीटिंग में संगठन के नाम के लिए सुझाव मांगे। काफी चर्चा के बाद तीन नामों को छांटकर निकाला गया। ये तीन नाम थे- ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’, जरी पटका मंडल’ और ‘भारतोद्धार मंडल’। नाम को लेकर वोटिंग हुई। 20 वोटों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम बहुमत से चुना गया।
स्वतंत्र भारत में कुल तीन प्रमुख प्रतिबंध लगाए गए हैं। ये प्रतिबंध मुख्य रूप से संगठन की कथित सांप्रदायिक गतिविधियों, हिंसा और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर आधारित थे। संघ पर पहला प्रतिबंध महात्मा गांधी की हत्या के बाद लगा। भारत सरकार ने 4 फरवरी 1948 को संघ पर प्रतिबंध लगाया। यह प्रतिबंध 16 महीने रहा और 11 जुलाई 1949 को हटाया गया। इसके बाद संघ पर दूसरा प्रतिबंध इमरजेंसी के दौरान लगा। 25 जून 1975 से 23 मार्च 1977 तक प्रतिबंध जारी रहा। फिर तीसरा प्रतिबंध बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय लगा। 10 दिसंबर 1992 से 4 जून 1993 तक जारी रहा।
शताब्दी वर्ष के दौरान आरएसएस गृह संपर्क अभियान के तहत देश भर के नागरिकों तक पहुंचकर उन्हें अपनी विचारधारा और कार्यों से अवगत कराएगा। देश भर में एक लाख से ज़्यादा जगहों पर हिंदू सम्मेलन भी आयोजित किए जाएंगे। संघ ने कहा कि सभी शाखाओं में पूर्ण गणवेश में अधिकतम स्वयंसेवक उपस्थित हो कर संघ का स्वरूप बताएंगे। वार्ड एवं सर्किल स्तर पर समाज सम्मेलन होंगे। खंड स्तर पर सामाजिक सद्भाव बैठकें की जाएंगी। इसके साथ ही प्रमुख जन गोष्ठी आयोजित होगी जिसमें सामाजिक स्तर पर सक्रिय सभी प्रमुख लोगों को आमंत्रित किया जाएगा। युवा शक्ति जागरण के कार्यक्रम भी होंगे। संघ प्रमुख मोहन भागवत विजयादशमी के मौके पर पंच परिवर्तन (स्व का बोध, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, नागरिक कर्तव्य) का संदेश देंगे।
Published on:
27 Sept 2025 02:34 pm
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