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Stroke Prevention : अब स्ट्रोक से बचना हुआ आसान – जानिए कैसे टेक्नोलॉजी और थैरेपी बदल रही हैं जिंदगी

Stroke Prevention: नई तकनीक और थैरेपी से स्ट्रोक का इलाज अब पहले से तेज और असरदार हुआ है। जानिए कैसे डॉक्टर, स्कैनिंग और स्मार्ट सिस्टम मिलकर जिंदगी बचा रहे हैं।

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भारत

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Manoj Vashisth

Oct 29, 2025

Stroke Treatment

Stroke Treatment : जानिए कैसे टेक्नोलॉजी और थैरेपी बदल रही हैं जिंदगी (फोटो सोर्स: AI image@Gemini)

Stroke Prevention : स्ट्रोक के इलाज में हर मिनट की अहमियत होती है, एक पल की देरी भी बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। आज डॉक्टरों के पास ऐसे आधुनिक तरीके हैं जो बीमारी की जल्दी पहचान, तेज इलाज और रीहैबिलिटेशन में मदद करते हैं। नई तकनीकों और सुव्यवस्थित कामकाज की वजह से डॉक्टर न सिर्फ समय बचा पा रहे हैं, बल्कि मरीजों की देखभाल को और भी असरदार बना रहे हैं। दुनिया भर में स्ट्रोक के इलाज के ये नए तरीके स्वास्थ्य सेवाओं को बदल रहे हैं। अगर मस्तिष्क की मुख्य रक्त वाहिकाएं बंद हो जाएं, तो हर मिनट करीब 20 लाख मस्तिष्क कोशिकाएं नष्ट हो सकती हैं। यह दिखाता है कि स्ट्रोक के मामले में तुरंत एक्शन कितना जरूरी है।

Stroke Prevention : त्वरित निदान और उपचार में तकनीक की भूमिका

भारत में किए गए अध्ययनों के मुताबिक, अब आधुनिक स्कैनिंग तकनीक और इलाज की नई प्रक्रिया की वजह से इलाज शुरू करने में लगने वाला समय पहले की तुलना में लगभग 40% तक घट गया है। साथ ही, इलाज शुरू करने की गति में करीब 27% सुधार हुआ है, जिससे अब ज्यादा मरीजों को समय रहते उपचार मिल पा रहा है। हालांकि भारत में चुनौती अभी भी बड़ी है। हर साल करीब 18 लाख नए स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं, जबकि एक लाख लोगों पर न्यूरोलॉजिस्ट की संख्या दो से भी कम है। यही कारण है कि जरूरत और विशेषज्ञ देखभाल के बीच का अंतर अभी भी काफी बड़ा बना हुआ है। इसे यह साफ पता चलता है कि आज स्ट्रोक को लेकर बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली कितनी जरूरी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक गुणवत्तापूर्ण स्ट्रोक देखभाल समय पर पहुंच सके।

डॉ. राजुल अग्रवाल ने बताया कि स्ट्रोक के इलाज में सबसे बड़ी चुनौती यह नहीं होती कि क्या करना है, बल्कि यह होती है कि कब करना है। उन्होंने कहा कि मस्तिष्क शरीर के सबसे संवेदनशील अंगों में से एक है, और हर मिनट की देरी लाखों न्यूरॉन्स के नुकसान का कारण बन सकती है। ऐसे में हमरा फोकस जल्द और बेहतर इलाज पर है। प्रोटोकॉल और रीयल-टाइम अलर्ट सिस्टम की मदद से हमारी स्ट्रोक टीम मरीज के अस्पताल पहुंचने से पहले ही सक्रिय हो जाती है। यह निरंतर तैयारी, दिन के 24 घंटे और साल के 365 दिन सुनिश्चित करती है कि हम न सिर्फ समय बचा रहे हैं, बल्कि हर सेकंड के साथ किसी की जिंदगी भी बचा रहे हैं।

केस स्टडी

जुलाई 2025 में स्कॉटलैंड के 31 वर्षीय सैम बुकान तैराकी के दौरान लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर ही गिर पड़े। उन्हें हीट स्ट्रोक हुआ, जिससे उनकी हृदय गति रुक गई। तुरंत बचाव कार्य शुरू किया गया और उन्हें मॉरिस्टन अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तीन दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई। यह घटना दिखाती है कि कैसे अत्यधिक शारीरिक मेहनत शरीर में हीट इंजरी, हृदय गति रुकने और फिर मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी (ब्रेन हाइपोक्सिया) का कारण बन सकती है जिसे न्यूरोलॉजिस्ट गंभीर स्ट्रोक जैसी स्थिति मानते हैं।

डॉ. मुकुंद अग्रवाल कहते हैं कि डॉक्टर की समझ और अनुभव हमेशा महत्वपूर्ण रहते हैं, लेकिन आज की तकनीक ने हमें बहुत मदद दी है। अगर किसी मरीज में बड़ी मस्तिष्क की नस ब्लॉक होने का शक होता है, तो आधुनिक टेस्ट और मशीनें हमें तुरंत यह दिखा सकती हैं कि मस्तिष्क का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है, कौन सा हिस्सा सुरक्षित है और कहाँ रक्तस्राव का खतरा हो सकता है। इससे डॉक्टर जल्दी और सही निर्णय ले सकते हैं, खासकर ऐसे मामलों में जहाँ देरी मस्तिष्क की कोशिकाओं को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है।

व्यक्तिगत पुनर्वास (रीहैबिलिटेशन) का नया दौर

जब आपातकालीन स्थिति संभाल ली जाती है, तो असली चुनौती होती है मरीज का ठीक होना। आज की आधुनिक थैरेपी और पुनर्वास तकनीकें हर मरीज की जरूरत के हिसाब से बनाई जाती हैं। इसमें हल्की-हल्की गतिविधियां, मरीज की ताकत और क्षमता को जांचना, और खास तरह की थैरेपी शामिल होती है, ताकि मरीज चलने-फिरने और रोजमर्रा के काम करने में बेहतर हो सके। डॉ. अग्रवाल कहते हैं, हम सिर्फ यह नहीं देखते कि मरीज कितना हिल सकता है, बल्कि यह भी देखते हैं कि उसकी हरकत कितनी आसान है और वह कितनी लगातार कोशिश कर रहा है। ये बातें तय करती हैं कि अगले दिन की थैरेपी कैसी होगी। यह ऐसा है जैसे हर मरीज के लिए मस्तिष्क विज्ञान ने एक व्यक्तिगत रिकवरी कोच तैयार किया हो।”

जैसे-जैसे भारत में स्ट्रोक इलाज के लिए बुनियादी ढांचा मजबूत हो रहा है, ये नई तकनीकें सिर्फ समय नहीं बचातीं, बल्कि मरीज की ठीक होने की प्रक्रिया को भी बेहतर और असरदार बना रही हैं।

तकनीक और मानवता का समन्वय

डॉ. अमोल सुदके कहते हैं, स्ट्रोक के मरीज को सिर्फ तुरंत इलाज की नहीं, बल्कि उम्मीद की भी जरूरत होती है। आधुनिक मशीनों से हम कुछ ही मिनटों में थक्का पहचान सकते हैं, लेकिन शुरुआती दस मिनटों में मरीज और उसके परिवार को भरोसा देना — यही असली काम न्यूरोलॉजिस्ट का होता है। स्ट्रोक देखभाल का भविष्य मशीन और इंसान के बीच मुकाबला नहीं, बल्कि दोनों का साथ में काम करने में है।”

आज जब हर सेकंड मस्तिष्क की कोशिकाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है, न्यूरोलॉजिस्ट के लिए असली वरदान यही है समय को पकड़ पाना, ताकि वे जल्दी हस्तक्षेप कर सकें, इलाज कर सकें और किसी की जिंदगी को फिर से सामान्य बना सकें।