
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया
DK Shivkumar: कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की लड़ाई एकबार फिर बेंगलुरू से निकलकर दिल्ली पहुंच गई है। डीके शिवकुमार के कट्टर समर्थक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे गृह राज्य कर्नाटक में हैं। कहा जा रहा है कि खरगे जल्द ही राज्य के सीएम सिद्धारमैया से मुलाकात कर सकते हैं।
रामनगर से कांग्रेस विधायक इकबाल हुसैन ने कहा कि पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने उनसे वादा किया है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। हुसैन ने मीडिया समूह संग बातचीत में कहा कि खड़गे ने डीकेएस का समर्थन करने वाले सांसदों की राय मांगी है और उनसे कहा है कि वह इस मुद्दे पर पार्टी की कोर लीडरशिप से सलाह लेंगे। डीके शिवकुमार ने कर्नाटक में पार्टी को सत्ता में लाने के लिए संघर्ष किया है और कोशिश की है। वह मुख्यमंत्री बनने के हकदार हैं। उनमें पोटेंशियल है और इसलिए हमने हाईकमान और सिद्धारमैया से रिक्वेस्ट की है कि डीके शिवकुमार को नया मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया जाए।
राज्य की सियासत एकबार गरमा गई है। DK शिवकुमार के कट्टर समर्थक इकबाल हुसैन, एच सी बालकृष्ण और एस आर श्रीनिवास दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। दूसरी तरफ, डीके ने तबीयत का हवाला देते हुए शुक्रवार को अपने सभी प्रोग्राम कैंसिल कर दिए। कर्नाटक के सियासी गलियारों में कहा गया है शिवकुमार दरअसल कांग्रेस की तबीयत नासाज करना चाहते हैं। बिहार विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी को महज 6 सीटों पर जीत नसीब हुई है। ऐसे में पार्टी हाईकमान भारी दबाव में है। शिवकुमार इस दबाव का फायदा उठाना चाहते हैं।
साल 2023 में कांग्रेस को कर्नाटक में बंपर जीत मिली थी। 224 विधानसभा सीटों में से पार्टी ने 135 सीटों पर पताका लहराया था। सरकार गठन के समय कहा गया कि कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच 2.5-2.5 साल का फॉर्मूला तय किया गया है। डिप्टी सीएम के खेमे से कहा जा रहा है कि इस हिसाब से अक्टूबर में CM सिद्धारमैया की अवधि पूरी हो गई है। अब सत्ता का स्थानांतरण शिवकुमार के पास होना चाहिए। इसके लिए कई महीनों से शिवकुमार की लॉबी बेंगलुरु से दिल्ली की चक्कर लगा रही है। हालांकि, सिद्धारमैया इसके लिए अब तक तैयार नहीं दिखे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम आने के ठीक दो दिन बाद यानी 16 नवंबर को कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने कांग्रेस नेता व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की थी। सिद्धारमैया इस मुलाकात को गुप्त रखना चाहते थे। उन्होंने एक भी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर नहीं की, जबकि सामान्यत राहुल गांधी के साथ मुलाकात होने पर कांग्रेस नेता तस्वीर जरूर साझा करते हैं। मगर राहुल संग सीएम की मीटिंग की खबर मीडिया में फैल गई। इसके बाद जब सिद्धारमैया से सवाल हुए तो उन्होंने कहा कि इस मुलाकात में सिर्फ बिहार चुनाव रिजल्ट को लेकर चर्चा हुई।
दिलचस्प यह है कि कांग्रेस में पावर शेयरिंग को लेकर कई बार सर-फुटव्वल की नौबत आ चुकी है। सबसे पहला मामला मध्य प्रदेश में सामने आया था। साल 2018 में कांग्रेस मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापस आई थी और महज 15 महीनों में गिर भी गई। यहां ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला तो तय नहीं हुआ था, लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन सीएम कमलनाथ और तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया (अब भाजपा नेता) के बीच खाई बढ़ गई थी। इसके बाद 22 विधायकों के साथ सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए और 15 साल बाद लौटी कांग्रेस सरकार फिर से राज्य में विपक्षी पार्टी बन गई।
दूसरा मामला राजस्थान में सामने आया था। यहां भी कांग्रेस 2018 में सत्ता में आई थी। पार्टी हाईकमान ने अशोक गहलोत को सीएम और सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया था। यहां भी पावर शेयरिंग को लेकर मामला काफी लंबा खींचा। सचिन पायलट अपने समर्थकों को लेकर गुरुग्राम के मानेसर स्थित होटल पहुंच गए।
प्रदेश सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया था। सरकार बचाने के लिए अशोक गहलोत को अपने समर्थित विधायकों की बाड़ेबंदी भी करनी पड़ी। 34 दिनों तक विधायकों के साथ गहलोत भी पहले जयपुर और फिर जैसलमेर के होटलों में रहे। बाद में सचिन पायलट और उनके समर्थित विधायकों ने सरेंडर किया और सदन में गहलोत सरकार का साथ दिया तब जाकर संकट टला था।
तीसरा मामला छत्तीसगढ़ में सामने आया था। यहां भी कक्का यानी तत्काली सीएम भूपेश बघेल और बाबा यानी मंत्री टीएस सिंह देव की के बीच पार्टी के भीतर की लड़ाई जगजाहिर हुई थी। साल 2021 में बघेल सरकार के ढाई साल पूरा होने के बाद से पावर शेयरिंग को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। इसके बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मंत्री टीएस सिंह देव को दिल्ली तलब किया गया था। हालांकि, यहां गलतियों से सीख लेते हुए तत्कालीन कांग्रेस सीएम बघेल और पार्टी हाईकमान ने परिस्थिति को भांपते हुए चुनौतियों से पार पा लिया था।
हिमाचल में भी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू (सुक्खू) के नेतृत्व वाली सरकार पर पार्टी विधायकों की नाराजगी, गुटबाजी और क्रॉस वोटिंग जैसी घटनाओं ने कई बार संकट पैदा किया। साल 2024 में राज्यसभा चुनाव के दौरान यह देखने को मिला। 2024 के राज्यसभा चुनावों में 6 विधायकों ने बगावत कर दिया था। इसके कारण कांग्रेस की ओर से राज्यसभा के उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को हार का मुंह देखना पड़ा था।
मनगर के कांग्रेस विधायक व डीके शिवकुमार के करीबी इकबाल हुसैन ने जून महीने में उनके बारे में कहा था कि वह अगले दो से तीन महीने में राज्य का मुख्यमंत्री (CM) बन सकते हैं। इकबाल ने कहा कि सभी जानते हैं कि सत्ता में आने से पहले राज्य में कांग्रेस की क्या ताकत थी। हर कोई जानता है कि कांग्रेस पार्टी की जीत के लिए किसने संघर्ष किया, पसीना बहाया, प्रयास किया और रुचि दिखाई। शिवकुमार की रणनीति और उनके कार्यक्रम अब इतिहास में दर्ज हो चुके हैं।
जून महीने में हुसैन ने कहा था कि 100 से ज्यादा विधायक बदलाव चाहते हैं। कई विधायक इस पल का इंतजार कर रहे हैं। वे अच्छे शासन की उम्मीद रखते हैं और मानते हैं कि डीके शिवकुमार को मौका मिलना चाहिए। उन्होंने पार्टी के लिए दिन-रात मेहनत की है और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी की ताकत बढ़ाई है। उनके काम की वजह से लोग उनके साथ खड़े हैं। हुसैन के सत्ता में बदलाव वाले बयान के बाद खलबली मच गई थी। कांग्रेस नेता और कर्नाटक कांग्रेस प्रभारी रणदीप सुरजेवाला को बेंगलुरू का दौरा करके विधायकों को मनाना पड़ा था।
डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। कर्नाटक की सियासत में वोक्कालिगा समुदाय को लिंगायत के बाद दूसरा किंगमेकर माना जाता है। राज्य की कुल आबादी में वोक्कालिगा की लगभग 16 फीसदी हिस्सेदारी है। पुराने मैसूर क्षेत्र (दक्षिण कर्नाटक) के 10-12 जिलों में वोक्कालिग्गा बहुत प्रभावी हैं। ऐसे में डीके शिवकुमार कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी विकल्प हो जाते हैं। क्योंकि राज्य का सबसे बड़ा समुदाय लिंगायत का झुकाव परंपरागत रूप से बीजेपी की तरफ रहा है। कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय के अब तक 6 मुख्यमंत्री बन चुके हैं।
Updated on:
22 Nov 2025 06:26 am
Published on:
22 Nov 2025 06:10 am
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