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क्या हथियाबंद नक्सलवाद के खात्मे पर अमित शाह की भविष्यवाणी होगी सच? अब तक कौन मारा गया, किसने किया सरेंडर

सबसे बड़ा दुर्दांत नक्सली हिड़मा को सुरक्षाबलों ने मार गिराया। अब जल्द ही देश से हथियारबंद नक्सलवाद का खात्मा होने की उम्मीद जगी है। जानिए क्या थी अमित शाह की भविष्यवाणी...

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Naxal

नक्सली (फोटो-IANS)

Naxal: भारत में लाल गलियारे का आखिरी पन्ना तेजी से लिखा जा रहा है। सुरक्षाबल जल्द ही हथियारबंद नक्सलवाद को इतिहास की किताब में समेट देंगे। भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी डेडलाइन मार्च 2026 तय की है, लेकिन 18 नवंबर 2025, मंगलवार को भारतीय सुरक्षाबलों को माओवादियों के खिलाफ बड़ी सफलता हाथ लगी है। सुरक्षाबलों ने दुर्दांत नक्सली हिड़मा और उसकी पत्नी राजे उर्फ रजक्का को आंध्रप्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा पर मार गिराया है। ऐसा कहा जाता था कि हथियाबंद नक्सली आंदोलन का अंत तभी होगा जब हिड़मा मारा जाएगा। मंगलवार को सुरक्षाबलों ने वह काम पूरा कर दिया है।

कौन था हिड़मा ?

सुकमा के पुवर्ती गांव में साल 1981 में जन्मा एक आदिवासी लड़का जो दसवीं के बाद लाल आतंक की ओर बढ़ चला था। मादवी हिड़मा ऊर्फ हिड़मालु ऊर्फ संतोष आने वाले दशकों में बस्तर का सबसे खतरनाक माओवादी बनकर उभरा। 2001 में कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी में शामिल होकर उसने भारत सरकार के खिलाफ कई बड़े हमलो को अंजाम दिए। वह कुल 26 हमलों का मास्टरमाइंड रहा। हिड़मा ने 2010 दंतेवाड़ा में CRPF पर हमला (इसमें 76 CRPF जवान शहीद हुए), 2013 झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं का कत्लेआम (महेंद्र कर्मा सहित छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कई शीर्ष नेता मारे गए) और 2017 सुकमा में 25 जवानों के कत्लेआम की रणनीति बनाई थी। प्लानिंग और गुरिल्ला रणनीति को देखते हुए उसे माओवादी पार्टी के केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया था। वह बटालियन-1 का कमांडर भी था।

ऑपरेशन कगार की शुरुआत

23 जून 2025 को रायपुर में अमित शाह ने ऑपरेशन कगार शुरू होने के बाद कहा, ‘मैंने कहा था कि 31 मार्च, 2026 को यह देश नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा। आज मैं दोहराना चाहूंगा कि जिस तरह से सुरक्षाबलों ने वीरता दिखाई है, हम इस लक्ष्य को हासिल करेंगे। देश जब नक्सलवाद से मुक्त होगा, वो क्षण आजादी के बाद सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक होगा।’

वो दिन दूर नहीं जब लाल आतंक का होगा खात्मा: PM मोदी

पीएम मोदी ने 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के मौके पर कहा था, 'मैं लाखों माताओं बहनों को अपने बच्चों के लिए रोते बिलखते नहीं छोड़ सकता था। इसलिए 2014 में जब आपने भाजपा को अवसर दिया तो भारत को माओवादी आतंक से मुक्ति दिलाने का संकल्प हमने लिया। आज इसके नतीजे देश देख रहा है। 11 साल पहले देश के 125 जिले माओवादी आतंक की चपेट में थे। अब सवा सौ जिलों में से सिर्फ 3 जिले बचे हैं, जहां माओवादी आतंक है। मैं देशवासियों को गारंटी देता हूं कि वो दिन दूर नहीं जब हमारा छत्तीसगढ़, हमारा हिंदुस्तान, हिंदुस्तान का कोना-कोना माओवादी आतंक से मुक्त हो जाएगा।'

नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में कमी आई

दरअसल, केंद्र में साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के साथ ही नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन तेज कर दिए। साल 2013 में नक्सलियों का देश के 20 राज्यों के 182 जिलों में असर था। अप्रैल 2018 में यह घटकर 90, जुलाई 2021 में 70 और अप्रैल-2024 में 38 रह गई। अत्यधिक नक्सल प्रभावित इलाकों की संख्या भी 12 से घटकर 6 रह गई है। इनमें छत्तीसगढ़ के चार जिले (बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा), झारखंड का एक जिला (पश्चिमी सिंहभूम) और महाराष्ट्र का एक जिला (गढ़चिरौली) शामिल है।

एक-एक कर मारे गए टॉप नक्सली

सुरक्षाबलों द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन कगार में एक-एक करके टॉप नक्सली मारे जा चुके हैं, जबकि कई नक्सलियों ने सरेंडर किया है। छत्तीसगढ़ के घने अभुजमाड़ जंगल में सुरक्षा बलों ने 21 मई 2025 को सीपीआई (महासचिव) नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू समेत 27 नक्सलियों को मौत के घात उतार दिया था। यह नक्सल विरोधी कार्रवाई के इतिहास में सबसे बड़ा ऑपरेशन था। बसवराजू पर 1.5 करोड़ रुपए का इनाम था। वह साल 2018 में मुप्पाला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति के बाद पार्टी का महासचिव बना था।

वहीं, सुरक्षाबलों ने इस साल कई टॉप नक्सली नेताओं को मार गिराया है। इनमें गौतम उर्फ सुधाकर (केंद्रीय समिति के सदस्य), भास्कर राव उर्फ मेलारापु एडेल्लू (तेलंगाना राज्य समिति के सदस्य), कट्टा रामचंद्र रेड्डी (केंद्रीय समिति के सदस्य), कडरी सत्यनारायण रेड्डी (केंद्रीय समिति के सदस्य) और मोडेम बालकृष्ण (केंद्रीय समिति के सदस्य) शामिल हैं।

किन नक्सलियों ने किया सरेंडर

सुरक्षाबलों ने जब नक्सलियों को अपने शिकंजे में लेना शुरू किया तो कई टॉप नक्सली कमांडरों ने सरेंडर कर दिया। इनमें दो सबसे बड़े नाम सामने आए। पहला, माओवादी पार्टी के केंद्रीय समिति सदस्य मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू ऊर्फ अभय का है। इसके साथ ही, माओवादी पार्टी के केंद्रीय समिति के सदस्य रूपेश उर्फ सतीश ने भी सरकार के सामने सरेंडर किया। दामोजी और सोमजी जोकि केंद्रीय समिति सदस्य थे। उन्होंने भी सरेंडर किया। मल्लोजुला कोटेश्वर राव ऊर्फ किशन जी की विधवा पोटुला पद्मावती उर्फ सुजाता ने भी तेलंगाना में सरकार के सामने सरेंडर किया। किशनजी को सुरक्षाबलों ने साल 2011 में पश्चिम बंगाल के जंगलमहल इलाके के बुरीशोल जंगल में मार गिराया था।

रूपेश ने बताया क्यों किया सरेंडर ?

रूपेश ने कहा कि महासचिव बसवा राजू भी चाहते थे कि संघर्ष विराम हो। इसी बीच बसवा राजू का एनकाउंटर हो गया। हमे अपने साथियों की चिंता है। हमें भविष्य के बारे में सोचना था। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि संघर्ष क्रांति का रास्ता प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजर रहा था। इसके कारण हमने सरेंडर किया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी पार्टी को बचाने के लिए, लोगों के लिए लड़ने के लिए सरेंडर के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं दिख रहा था। इसलिए हमनें सरेंडर किया।

पश्चिम बंगाल में 1967 के नक्सलबाड़ी से पैदा हुआ आंदोलन

नक्सल आंदोलन की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में जमीनदारों के खिलाफ आदिवासी और भूमिहीन किसानों के एक विद्रोह से हुई थी। इस विद्रोह का नेतृत्व चारु मजूमदार और कानू सान्याल जैसे वामपंथी नेताओं ने किया, जो माओत्से तुंग की विचारधारा से प्रेरित थे। यह आंदोलन वर्ग संघर्ष और भूमि सुधार की मांग को लेकर शुरू हुआ था और जल्द ही इसने सशस्त्र संघर्ष का रूप ले लिया, जो पूरे भारत में फैल गया।

चारु मजूमदार जैसे नेताओं का मानना था कि हिंसक क्रांति के माध्यम से ही राज्य को उखाड़ फेंका जा सकता है। इसके कारण उन्होंने 1969 में माओवादी विचारधारा पर आधारित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का गठन किया था। 2004 में दो प्रमुख नक्सली समूहों, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (MCCI) और पीपुल्स वार का विलय हो गया। जो बाद में CPI (माओवादी) नामक पार्टी बनी।

कौन-कौन शीर्ष नक्सली नेता जिंदा बचे?

अब सिर्फ गिने-चुने शीर्ष नक्सली नेता जिंदा बचे हैं। जो या तो अभी तक किसी मुठभेड़ में नहीं मारे गए हैं, या फिर उन्होंने सरकार के सामने सरेंडर नहीं किया है। ये नाम हैं- थिप्पिरी तिरूपति उर्फ देवजी, कहा जाता है कि बसवराज के मारे जाने के बाद देवजी को पार्टी महासचिव बनाया गया है। इसके साथ ही, पोलिथ ब्यूरो सदस्य मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति, पोलित ब्यूरो सदस्य मिसिर बेसरा और दंडकारण्य जोनल कमेटी प्रमुख प्रभाकर।