
शादाब अहमद
नालंदा (बिहार)। राजगीर, एक छोटा सा कस्बा, लेकिन यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का स्पोर्टस कॉम्पलेक्स, जिसमें ऊंची-ऊंची फ्लड लाइट्स वाले क्रिकेट स्टेडियम समेत अन्य खेल मैदान बने हैं। पास में ही गंगाजल योजना की ऊंची टंकी। यह नालंदा जिले के राजगीर के विकास की छोटी सी कहानी है। इस विकास के पीछे का कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है, क्योंकि नालंदा उनका गृह जिला है। इस जिले को उन्होंने विकास और सुशासन के प्रतीक के रूप में पेश किया है। नालंदा की हरनौत सीट से ही नीतीश का राजनीतिक सफर शुरू हुआ था। विकास के साथ कुर्मी जाति के प्रभुत्व के दम पर नालंदा में नीतीश के नाम की तूती बोल रही है। हालांकि विपक्ष की जेडीयू के इस अभेद्य गढ़ में बदलाव के नारे के साथ सेंध लगाने की कोशिश में है।
नालंदा के समीपवर्ती राजगीर को नीतीश ने अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, स्पोर्टस कॉम्लेक्स, रोपवे, सफारी पार्क, घोड़ा कटरा हेरिटेज कॉरिडोर, नालंदा विश्वविद्यालय और साफ-सुथरी सडक़ें बनाकर विकास का उजला पक्ष दिखाया है। वहीं ग्रामीण इलाकों की तस्वीर इतनी उजली नहीं है। हरनौत से लेकर बिहार शरीफ, इस्लामपुर तक गांवों में खराब सडक़ें, खेतों में सिंचाई की कमी, बेरोजगारी और शिक्षा की बदहाली जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं। नालंदा विश्वविद्यालय (प्राचीन) के समीप होटल चलाने वाले रामकिशोर महतो ने कहा कि यहां तो नीतीश ही सबकुछ है। आज से बीस साल पहले नालंदा में पर्यटक रात को ठहरते तक नहीं थे। अब राजगीर और बिहार शरीफ में पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। रात में चलना सुरक्षित हो गया है। बिहार शरीफ में मजदूर सूरज दास ने कहा कि अब काम की बात होनी चाहिए, नाम की नहीं। पहाड़ पर बने हमारे मकानों को सरकार हटाना चाहती है। यह सरकार गरीब और मजदूरों के साथ नहीं है।
जेडीयू के सबसे खराब प्रदर्शन वाले 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नालंदा ने नीतीश का साथ नहीं छोड़ा था। तब यहां की 7 में से 6 सीटें एनडीए के खाते में गई थी। खासतौर पर राजगीर, नालंदा और हरनौत जेडीयू का मजबूत गढ़ है। हालांकि प्रशांत किशोर ने बेरोजगारी, पलायन और सिंचाई के मुद्दे पर सबसे ज्यादा जोर यही देकर जनसुराज पार्टी को सियासी खाद-पानी दिया है। इसके साथ ही महागठबंधन विकास की चमक के पीछे छिपे असंतोष से में दरारें तलाशकर नीतीश के गढ़ को ढहाने की कोशिश में हैं।
नीतीश को अपने गृह जिले नालंदा की अहमियत पता है। यही वजह है कि उन्होंने यहां एक ही दिन में सातों विधानसभा का दौरा कर सभाएं कर दी। साथ ही भाजपा की रणनीति के विपरीत नीतीश मुस्लिम कल्याण की बात कर अपने परंपरागत वोट बैंक को साधने से नहीं चूक रहे हैं।
यह उन सीटों में शामिल है, जहां महागठबंधन के दलों को दोस्ताना चुनाव लडऩा पड़ रहा है। कांग्रेस ने यहां से अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश अध्यक्ष ओमेर खान को खड़ा किया है। जबकि महागठबंधन के ही दल सीपीआइ ने मजदूर नेता शिवपाल यादव को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने वर्तमान विधायक सुनील कुमार और जनसुराज ने दिनेश कुमार को मैदान में उतारा है। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस उम्मीदवार ओमेर गया के रहने वाले हैं। उनके बाहरी होने का मुद्दा बन रहा है। ऐसे में भाजपा से सीपीआइ टक्कर लेती दिख रही है।
Published on:
04 Nov 2025 01:17 pm
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