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भोरमदेव अभयारण्य में तितली सम्मेलन का दूसरा संस्करण संपन्न, 5 नई प्रजातियों की हुई पहचान, संख्या बढ़कर 134…

Kawardha News: भोरमदेव अभयारण्य क्षेत्र में पांच नई प्रजातियों की तितली की पहचान की गई है। तीन दिवसीय तितली सम्मेलन द्वितीय संस्करण का आयोजन किया गया। इस दौरान प्रतिभागियों ने तितली की पांच नई प्रजातियों की पहचान की।

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अभयारण्य में तितली के 5 नई प्रजातियाें की पहचान (फोटो सोर्स- पत्रिका)

अभयारण्य में तितली के 5 नई प्रजातियाें की पहचान (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Kawardha News: भोरमदेव अभयारण्य क्षेत्र में पांच नई प्रजातियों की तितली की पहचान की गई है। तीन दिवसीय तितली सम्मेलन द्वितीय संस्करण का आयोजन किया गया। इस दौरान प्रतिभागियों ने तितली की पांच नई प्रजातियों की पहचान की।

तितली सम्मेलन द्वितीय संस्करण का आयोजन 10 से 12 अक्टूबर किया गया। इस आयोजन में बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों से कुल 41 प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रतिभागियों द्वारा भोरमदेव अभ्यारण्य के विभिन्न क्षेत्रों में 5 नई तितली प्रजातियां दर्ज की गई। बीते वर्ष भोरमदेव अभयारण्य में प्रथम तितली सम्मेलन का आयोजन किया गया था।

तितलियों की पहचान करने वनमंडल द्वारा अभ्यारण्य के अंदर 10 ट्रेल बनाए गए थे। तितली सम्मेलन में कुल 87 तितलियों के साथ 6 नए तितलियों की पहचान भोरमदेव अभयारण्य में की गई थी। दो वर्ष के सर्वेक्षण के दौरा पता चला कि अभयारण्य क्षेत्र में पाई जाने वाली तितलियों की कुल संख्या 134 प्रजातियों तक पहुंच गई है। वनमंडलाधिकारी निखिल अग्रवाल ने बताया कि सम्मेलन से प्राप्त आंकड़े और अनुभव भविष्य में भोरमदेव अभयारण्य की तितली संरक्षण प्रबंधन योजना को और अधिक सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध होंगे।

134 तिललियां…

मैकल पर्वत श्रृंखला के मध्य 352 वर्ग किलोमीटर में फैले भोरमदेव अभयारण्य में अनेक वन्यजीवों, पक्षियों, सरीसृपों और दुर्लभ वनस्पतियों का प्राकृतिक आवास है। इस अभयारण्य में लगभग 134 प्रकार के तितली होने का रिकार्ड किया गया है। हालांकि आमतौर पर करीब 90 प्रजाति की तितलियों को देखा जा सकता है। अभयारण्य में अपने प्राकृतिक रहवास में पाई जाने वाली इन तितलियों को संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि लगातार घटते जंगलों व परभक्षियों से इन्हें बचाया जा सके।

परागण में मुख्य भूमिका

परागण पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण अंग है जो तितलियों के सहयोग से किया जाता है। लगभग 90 प्रतिशत फूलों के पौधे और 35 प्रतिशत फसलें, पशु परागण पर निर्भर करती हैं। इनके द्वारा मधुमक्खियों, मक्खियों और भृंग जैसे परागणकों को भी संवर्धन व विकास का अवसर मिलता है। तितलियां विलुप्त हो गईं तो चॉकलेट, सेब, कॉफी और अन्य खाद्य पदार्थों का आनंद नहीं ले सकेंगे। वहीं हमारे दैनिक अस्तित्व में जिसका महत्वपूर्ण असर पड़ेगा क्योंकि दुनियाभर में लगभग 75 प्रतिशत खाद्य फसलें इन परागणकर्ताओं पर निर्भर करती है। ऐसे में तितलियों को बचाना आवश्यक है।

प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए

तीन दिवसीय तितली सम्मेलन का समापन रविवार को चिल्फी में संपन्न हुआ। कार्यक्रम के दौरान अभयारण्य अधीक्षक अनिता साहू द्वारा तितली संरक्षण एवं संवर्धन से संबंधित भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की गई। इस अवसर पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रतिभागियों एवं वन विभाग के अधिकारियों द्वारा नींबू पौधे का पौधारोपण किया गया।

साथ ही प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह के रूप में नींबू पौधा प्रदाय किया गया। प्रतिभागियों को बैगा ग्राम का भ्रमण भी कराया गया, जहां उन्होंने स्थानीय समुदाय की परंपरागत पर्यावरणीय समझ और जैव विविधता संरक्षण के प्रयासों का अनुभव प्राप्त किया। कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए और तितलियों के संरक्षण में स्थानीय जनसहभागिता की भूमिका पर बल दिया। समापन कार्यक्रम के अवसर पर परिक्षेत्र अधिकारी चिल्फी लाल सिंह मरकाम, परिक्षेत्र अधिकारी भोरमदेव अभ्यारण्य अनुराग वर्मा, विक्रांता सिंह प्रशिक्षु वनक्षेत्रपाल सहित भोरमदेव व चिल्फी के समस्त क्षेत्रीय अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित रहे।