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Ravan ka Dahan: दशहरे पर रावण दहन की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? जानिए रोचक कहानी

Ravan ka Dahan: क्या आप जानते हैं कि रावण का पुतला सबसे पहले कब और कहां जलाया गया था? पढ़ें दशहरे और रावण दहन की परंपरा से जुड़ी रोचक कहानी, दिल्ली, रांची और नागपुर की अनोखी शुरुआत के बारे में।

2 min read

भारत

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Dimple Yadav

Sep 28, 2025

Ravan ka Dahan

Ravan ka Dahan (photo- gemini ai)

Ravan ka Dahan: हर साल दशहरे के मौके पर पूरे देश में एक जैसी तस्वीरें देखने को मिलती हैं। मैदानों में हजारों लोग जुटते हैं, रामलीला का मंचन होता है और अंत में रावण का विशाल पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मनाया जाता है। यह परंपरा आज पूरे देश में लोकप्रिय हो चुकी है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रावण दहन की शुरुआत आखिर कब और कहां से हुई थी?

रामायण की कथा हजारों साल पुरानी है, लेकिन रावण का पुतला जलाने की परंपरा बहुत पुरानी नहीं है। इसे व्यापक स्तर पर मान्यता आजादी के बाद मिली।

सबसे पहला रावण दहन

इतिहासकारों और जानकारों के अनुसार, पहला रावण दहन वर्तमान झारखंड की राजधानी रांची (तब बिहार का हिस्सा) में हुआ था। माना जाता है कि यह आयोजन वर्ष 1948 में हुआ, जब पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने इस परंपरा की शुरुआत की। शुरुआती दिनों में यह आयोजन काफी छोटा था, लेकिन धीरे-धीरे लोगों की भागीदारी बढ़ती गई और यह एक बड़े त्योहार का रूप ले लिया।

दिल्ली में रावण दहन की शुरुआत

देश की राजधानी दिल्ली में पहली बार रावण का पुतला 17 अक्टूबर 1953 को जलाया गया था। दिलचस्प बात यह है कि उस समय पुतला लकड़ी या कागज का नहीं बल्कि कपड़ों से बनाया गया था। शुरुआती वर्षों में यह कार्यक्रम छोटे स्तर पर हुआ करता था, लेकिन समय के साथ यह दिल्ली के सबसे भव्य आयोजनों में शामिल हो गया। आज दिल्ली का रामलीला मैदान दशहरे की भव्यता का प्रतीक माना जाता है।

नागपुर की अनोखी कहानी

नागपुर में पहली बार जब रावण का पुतला तैयार किया गया, तो उसकी ऊंचाई 35 फीट रखी गई। उस दौर में क्रेन जैसी आधुनिक सुविधाएं नहीं थीं। पुतले को खड़ा करने के लिए बड़ी सी सीढ़ी का सहारा लिया गया, जिस पर करीब 50 लोग चढ़े और नीचे से 100 से ज्यादा लोगों ने रस्सियों से उसे संभाला। इस अनोखे प्रयास ने उस समय लोगों को बेहद रोमांचित कर दिया।

रावण दहन क्यों किया जाता है?

दशहरे के दिन भगवान राम ने रावण का वध कर बुराई पर विजय पाई थी। तभी से यह दिन अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। रावण दहन का संदेश साफ है। चाहे अहंकार, अन्याय और अत्याचार कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंततः जीत हमेशा सच्चाई और धर्म की ही होती है।


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