
शरद पूर्णिमा की रात्रि में श्रीराधा-कृष्ण मंदिर परिसर में नाटक का किया मंचन
हाइटेक युग में भी जिंदा है नाटक की परंपरा, जुझार गांव में दो सौ साल से जारी सांस्कृतिक विरासत
दमोह के बनवार में वर्तमान में हाईटेक मनोरंजन के दौर में जहां सिनेमा, मोबाइल और सोशल मीडिया ने लोगों को अपनी दुनिया में बांध लिया है, वहीं दमोह जनपद के जुझार गांव में आज भी नाटक मंचन की दो सौ वर्ष पुरानी परंपरा जीवित है। यहां की सत्संग आदर्श नाटक कंपनी जुझार ग्रामीण संस्कृति और समाज को जोडऩे का माध्यम बनी हुई है।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में श्रीराधा कृष्ण मंदिर परिसर, जुझार में कंपनी के कलाकारों द्वारा एक भव्य नाट््य मंचन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत गणेश व कृष्ण आरती से हुई, इसके बाद लज्जावती धर्म की देवी और हास्यप्रद अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
गांव के कड़ोरी सेन बताते हैं कि यहां नाटक की परंपरा करीब 200 वर्षों से लगातार जारी है। खास बात यह है कि नाटक में कोई बाहरी कलाकार नहीं, बल्कि गांव के ही लोग मंचन करते हैं। दर्शकों की भीड़ इतनी होती है कि आसपास के गांवों से सैकड़ों लोग रातभर नाटक देखने पहुंचते हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी बड़ी संख्या में शामिल रहते हैं।
नाटक के निर्देशक कैलाश आदिवासी ने बताया कि नाटक की जीवंत प्रस्तुति स्थानीय भाषा में की जाती है ताकि कम पढ़े-लिखे लोग भी कहानी को आसानी से समझ सकें। उन्होंने कहा नाटक हमारी परंपरा और समाज की आत्मा है, इसे जीवित रखना हमारा धर्म है। गांव के कड़ोरी सेन ने बताया कि यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है और दो सौ वर्षों से जुझार गांव इस विरासत को सहेजे हुए है।
वहीं, युवा हेमेंद्र असाटी राजन ने कहा, हाइटेक मनोरंजन के इस युग में भी कुछ गांव ऐसी परंपराओं को बचाए हुए हैं, जो सराहना के पात्र हैं। नई पीढ़ी को भी इस लोक कला को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए, जोकि जुझार के युवा बखूबी से उठा रहे है।
कलाकारों की जीवंत प्रस्तुति
इस वर्ष हुए मंचन में पंडित द्वारका प्रसाद तिवारी, पंडित तेजेंद्र तिवारी, जुगराज महोबिया, महेश सेन, पुष्पेंद्र महोबिया, मुन्ना अठया, हल्ले सेन, नन्नू ङ्क्षसह ठाकुर, धरमू सेन, सेकल सेन, झाम ङ्क्षसह ठाकुर, रेवाराम अठ्या सहित कई कलाकारों ने अपने जीवंत अभिनय से दर्शकों का मन जीत लिया।
Published on:
09 Oct 2025 02:03 am
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