कृषि:गंगानगर की धरती पर केमिकल का साया,पोषक तत्वों की कमी से क्षीण हो रही जैविक शक्ति
-मृदा में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी के कारण श्रीगंगानगर क्षेत्र में प्रमुख फसलों की औसत पैदावार में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है।
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पत्रिका एक्सक्लूसिव-कृष्ण चौहान
श्रीगंगानगर.राज्य के साथ देशभर में अपनी उपजाऊ माटी और सुदृढ़ नहरी तंत्र के लिए विख्यात गंगानगर जिला अब मिट्टी के असंतुलन से जूझ रहा है। बता दें कि लगातार एक ही फसल बोने,रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग तथा सिंचाई जल में बढ़ता प्रदूषण अब जिले में भूमि की जीवनशक्ति छीन रहे हैं। आजकल यहां की मिट्टी में जिंक और आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भारी कमी पाई गई है,जबकि पोटाश की आवश्यकता तेजी से बढ़ रही है। यह स्थिति कृषि उत्पादन के लिए गंभीर चुनौती बनती जा रही है। मिट्टी की पोषण क्षमता घटने से न केवल उपज पर असर पड़ रहा है बल्कि भूमि की उर्वरता शक्ति भी लगातार कमजोर हो रही है।
96 हजार नमूनों ने दिए चौंकाने वाले तथ्य
कृषि अनुसंधान केंद्र श्रीगंगानगर स्थित मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की ओर से पिछले चार वर्षों में जांचे गए 95 हजार 951 नमूनों के विश्लेषण में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। लगभग 100 प्रतिशत नमूनों में ऑर्गेनिक कार्बन यानी जैविक खाद की कमी पाई गई है। अर्थात किसान गोबर की खाद, केंचुआ खाद और हरी खाद का उपयोग लगभग बंद कर चुके हैं।
नष्ट हो रही पोषण क्षमता
सहायक निदेशक सुरजीत बिश्नोई का कहना है कि जिले की मिट्टी में जिंक,आयरन,फास्फोरस,पोटाश और ऑर्गेनिक कार्बन की कमी स्पष्ट रूप से दर्ज की गई है। इनसे पौधों की वृद्धि रुक जाती है, पत्तियां पीली पड़ती हैं और फसलों की गुणवत्ता घटती है। फास्फोरस की कमी से जड़े कमजोर होती हैं,जबकि पोटाश की कमी पौधों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को घटाती है। सबसे अधिक चिंता ऑर्गेनिक कार्बन की है,जिसकी कमी से मिट्टी की जलधारण और पोषण क्षमता कमजोर होती जा रही है।
भूमि के लिए जहर बना पानी
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अब मिट्टी की गुणवत्ता सिंचाई जल की गुणवत्ता पर भी निर्भर हो गई है। पंजाब के औद्योगिक क्षेत्रों से आने वाले अपशिष्ट युक्त पानी में जहरीले रासायनिक तत्व घुल रहे हैं,जो धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर रहे हैं। अनूपगढ़ और सूरतगढ़ क्षेत्र में कुछ जगहों पर प्रति बीघा उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है।
धरती की सेहत बचाने के उपाय
हर दो वर्ष में मिट्टी और सिंचाई जल की जांच अवश्य करवाएं।
गोबर की सड़ी-गली खाद, हरी खाद और केंचुआ खाद का नियमित उपयोग करें। फसल चक्र (क्रॉप रोटेशन) अपनाकर भूमि को विश्राम दें।जिंक सल्फेट, फेरस सल्फेट और पोटाश का संतुलित उपयोग करें।प्रदूषित जल से सिंचाई से बचें और स्वच्छ जल स्रोतों को प्राथमिकता दें।रासायनिक खाद व कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से परहेज करें। खेतों के किनारों पर पेड़-पौधे लगाकर जैव विविधता बढ़ाएं।
पोषक तत्वों की कमी होने पर संभावित उत्पादन (किग्रा/हे.)
गेहूं 4,508 2,931
जौ 4,385 2,851
चना 760 494
सरसों 1,656 1,077
फसल औसत उत्पादन (किग्रा/हे.)
औसत पैदावार में 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट
मृदा में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी के कारण श्रीगंगानगर क्षेत्र में प्रमुख फसलों की औसत पैदावार में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि खेतों में संतुलित उर्वरक प्रबंधन,जैविक खादों का उपयोग और मिट्टी परीक्षण आधारित पोषण योजना अपनाई जाए,तो इस उत्पादकता अंतर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
यदि किसानों ने समय रहते मिट्टी व पानी की जांच नहीं करवाई और खादों का असंतुलित उपयोग जारी रखा,तो आने वाले वर्षों में फसल उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। मिट्टी की पहचान उसकी जांच से ही होती है, किसान अपनी धरती की रिपोर्ट अवश्य बनवाएं।
सत्यप्रकाश साईच, प्रभारी,मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला,एआरएस,श्रीगंगानगर
…उपजाऊ मिट्टी आने वाले वर्षों में बंजर बन सकती है
अब समय आ गया है कि किसान पारंपरिक जैविक खादों की ओर लौटें, फसल चक्र अपनाएं और रासायनिक पदार्थों के अंधाधुंध प्रयोग पर नियंत्रण करें। साथी ही उन्होंने चेताया धरती भी जीवित है,उसे भी पोषण चाहिए। अगर हमने ध्यान नहीं दिया,तो श्रीगंगानगर की उपजाऊ मिट्टी आने वाले वर्षों में बंजर बनने की ओर बढ़ सकती है