जैविक कार्बन में गिरावट और मिट्टी की संरचना कमजोर, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता
नागौर. विश्व मृदा दिवस शुक्रवार को मनाया जाएगा, लेकिन मिट्टी की वर्तमान स्थिति किसानों और वैज्ञानिकों दोनों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। जिले में लगातार रासायनिक खादों के बढ़ते उपयोग ने मिट्टी की सेहत को गहरा नुकसान पहुंचाया है। मृदा परीक्षण की रिपोर्ट एवं विशेषज्ञों के अनुसार, मिट्टी के भीतर जैविक कार्बन तेजी से घटा है। जिसकी वजह से इसकी संरचना कमजोर हुई है और प्राकृतिक उपजाऊ शक्ति में कमी आई है।
लगातार यूरिया एवं डीएपी के प्रयोग से बिगड़ी स्थिति
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लंबे समय से यूरिया, डीएपी और पोटाश जैसी उर्वरकों का अनियंत्रित प्रयोग किया जा रहा है। इसका परिणाम यह है कि मिट्टी में जैविक पदार्थों का अनुपात बेहद कम हो गया है और कई आवश्यक तत्व अब गंभीर कमी की श्रेणी में पहुंच चुके हैं।
मृदा कार्ड में खुलासा: जिंक, सल्फर, आयरन, कार्बनिक पदार्थ की भारी कमी
ताजा मृदा परीक्षण रिपोर्टों के अनुसार जिले की मिट्टी में कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व खतरनाक स्तर तक घट गए हैं। इसके लिए कृषि विभाग की ओर से भी किसानों को जागरुक करने का काम किया जा रहा है। कई जगहों पर कृषि अधिकारी एवं सहायक कृषि अधिकारियों के साथ कृषि पर्यवेक्षक खुद ही किसानों के पास पहुंचकर उनको मिट्टी की पोषकता को बनाए रखने के लिए उपायों की जानकारी दे रहे हैं।
जिले में खेतों के मिट्टियों की स्थिति पर एक नजर
जिंक 50 से 60 प्रतिशत तक कमी
सल्फर 32 से 35 प्रतिशत तक कमी
आयरन 50 से 60 प्रतिशत तक कमी
कार्बनिक पदार्थ 90 से 91 प्रतिशत तक घटा
यही स्थिति रही तो फिर खेती करना मुश्किल हो जाएगा
इन आंकड़ों का सीधा मतलब यह है कि मिट्टी अपने प्राकृतिक पोषक तत्व किसानों को वापस देने में सक्षम नहीं रह गई। विशेषज्ञ बताते हैं कि जब मिट्टी में इन तत्वों की कमी बढ़ती है, तो पौधों की जड़ों द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण भी कम हो जाता है, जिसके कारण उत्पादन और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होते हैं। केमिकल के कारण मिट्टी की संरचना बिगड़ी, कठोर परत और जलधारण क्षमता में गिरावट आइ्र है। मृदा परीक्षणों के साथ ही इसके कार्डों से मिली जानकारी के अनुसार रासायनिक खादों के अधिक प्रयोग ने मिट्टी की भौतिक संरचना को भी नुकसान पहुंचाया है। खेतों में कठोर परत बनने की समस्या तेजी से बढ़ी है, जिससे पौधों की जड़ों का विकास बाधित होता है। मिट्टी की वायु-संचार क्षमता कम हो गई है, जिसका असर बीज अंकुरण और पौधों की वृद्धि पर पड़ता है। भूमि की जलधारण क्षमता भी घटी है, जिसके कारण किसान को सिंचाई पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है।कई इलाकों में मिट्टी की पीएच वैल्यू असंतुलित पाई गई—कुछ क्षेत्रों की मिट्टी तेज़ी से क्षारीय हो रही है, तो कुछ में अम्लीयता बढ़ रही है। यह असंतुलन फसलों की उगाने की क्षमता को सीधे प्रभावित करता है।
जैविक खेती की ओर लौटने की जरूरत, वैज्ञानिकों ने दिए सुझाव
कृषि अनुसंधान अधिकारी रणजीत सिंह का कहना है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो मिट्टी की स्थिति और खराब हो सकती है। विशेषज्ञों ने किसानों को जैविक खेती के प्रति जागरूक होने का आग्रह करते हुए सुझाव दिया है कि खेतों में गोबर की खाद, नीम की खली, कंपोस्ट व हरी खाद का उपयोग बढ़ाया जाए। फसल चक्रको अपनाया जाए ताकि मिट्टी को विभिन्न पोषक तत्व मिल सकें। रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग केवल वैज्ञानिक सलाह के अनुसार किया जाए। माइक्रो न्यूट्रिएंट्स जैसे जिंक, सल्फर व आयरन की कमी को संतुलित मात्रा में पूरा किया जाए। जब तक किसान रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम नहीं करेंगे और जैविक खेती की ओर नहीं बढ़ेंगे, तब तक मिट्टी की सेहत में बड़े पैमाने पर सुधार संभव नहीं है। मिट्टी का संतुलन बिगडऩा सिर्फ कृषि उत्पादन पर ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और आने वाली पीढिय़ों की खाद्य सुरक्षा पर भी असर डालेगा।