
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में विरोध प्रदर्शन। (फोटो: आईएएनएस.)
PoK Protests: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK Protests) में हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। सरकारी सुरक्षा बलों की गोलीबारी से अब तक दर्जन भर से ज्यादा प्रदर्शनकारियों (Pakistan Establishment) की जान जा चुकी है। इधर जम्मू कश्मीर जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी (JKAAC March) के नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित करने का नोटिस जारी किया गया है, लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी गई है कि अगर प्रदर्शन न रुके तो सख्त कार्रवाई होगी। जेकेएएसी के केंद्रीय नेता शौकत नवाज मीर के आह्वान पर 1 अक्टूबर को पूरे पीओके के शहरों और कस्बों से लोग मुजफ्फराबाद की ओर लंबा मार्च निकाल रहे थे। कोटली इलाके में पूरी तरह से बंद का पालन हुआ, जहां सरकारी बलों ने सभी मुख्य रास्तों को ब्लॉक कर दिया। जेकेएएसी कार्यकर्ताओं ने विरोध जताने के लिए धरना देना शुरू कर दिया।
धरकोट क्षेत्र में रावलाकोट और बाघ से करीब 2,000 जेकेएएसी कार्यकर्ताओं का काफिला मुजफ्फराबाद की ओर बढ़ा, लेकिन जैसे ही वे धरकोट पहुंचे, पुलिस ने उन पर गोलियां चला दीं। इस झड़प में चार नागरिक मारे गए, जबकि 16 लोग – जिनमें नागरिक और स्थानीय पुलिसकर्मी शामिल हैं, घायल हो गए। मुजफ्फराबाद के लाल चौक पर भी करीब 2,000 लोगों ने धरकोट की मौतों के खिलाफ धरना दिया। बाद में इसे बायपास पर शिफ्ट कर दिया गया, ताकि दूसरे इलाकों से आने वाले काफिले का इंतजार हो सके। यहां पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने हवाई फायरिंग और आंसू गैस के गोले छोड़े, जिसमें दो और नागरिक मारे गए। दादयाल में चाकस्वारी और इस्लामगढ़ से मार्च कर रहे काफिले पर भी पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें दो मौतें हुईं और करीब दस लोग जख्मी हो गए।
मौतों की संख्या 12 से ऊपर पहुंच चुकी है, जो पाकिस्तानी सेना की क्रूरता को बेनकाब कर रही है। पीओके सरकार के चीफ सेक्रेटरी ने जेकेएएसी नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया है, लेकिन प्रदर्शन न रोकने पर कड़ी कार्रवाई की धमकी भी दी है। लंदन में जेकेएएसी कार्यकर्ताओं ने 2 अक्टूबर को पाकिस्तान हाई कमीशन के सामने विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। पाकिस्तानी प्रतिष्ठान सोशल मीडिया पर इन घरेलू आंदोलनों को 'बाहरी ताकतों' की साजिश बता रहा है, बजाय प्रभावित लोगों से समझौता करने के। यह रणनीति नई नहीं है। पाकिस्तान हमेशा आंतरिक समस्याओं का ठीकरा बाहरी ताकतों पर फोड़ता रहा है।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के विद्रोह को आईएसपीआर 'भारतीय प्रायोजित' बताता रहा है, जबकि बलूचिस्तान का सशस्त्र संघर्ष 'फित्ना-अल-हिंदुस्तान' का नाम दिया जाता है। यह पाकिस्तानी प्रतिष्ठान की पुरानी चाल है – जिम्मेदारी से बचने के लिए दोष बाहरी दुश्मनों पर डालना। पीओके के लोग महंगाई, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं की कमी से त्रस्त हैं, लेकिन सरकार उनकी आवाज दबाने में लगी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये घटनाएं पाकिस्तान की आंतरिक कमजोरी को उजागर कर रही हैं। जेकेएएसी जैसे संगठन पीओके की आजादी और अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन हिंसा का जवाब हिंसा से देना सही नहीं।
बहरहाल पीओके संकट अब सिर्फ स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की स्थिरता से जुड़ा है। सरकार को प्रदर्शनकारियों की मांगें सुननी चाहिए, वरना मौतों का आंकड़ा बढ़ता जाएगा। भारत सरकार इस पर नजर रख रही है, लेकिन डिप्लोमैसी का रास्ता अपनाना बेहतर होगा। यह घटना हमें याद दिलाती है कि दमन से कोई समस्या हल नहीं होती। शांति और संवाद ही रास्ता है। (इनपुट: IANS)
Updated on:
02 Oct 2025 04:24 pm
Published on:
02 Oct 2025 04:23 pm
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