
Infant Mortality Rate : बालोद जिले में कुछ वर्षों से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े देखें तो जिले में हर साल 30-40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन तक नहीं मना पाते थे। इसका प्रमुख कारण इन बच्चों की एक साल के भीतर ही मौत हो जाना है। बीते साल की बात करें तो 0 से 12 माह के कुल 38 बच्चों की मौत हुई है। इस साल अभी तक 16 बच्चों ने जन्म के पहले वर्ष में ही दम तोड़ दिया। बड़ा कारण किसी न किसी रूप में सावधानी की अनदेखी या लापरवाही को माना जा रहा है।
यहां शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में लगातार सुधार देखा जा रहा है। पांच साल पहले के आंकड़े देखें तो 150 से 200 बच्चे की मौत एक साल के भीतर हो रही थी। जिले में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार से यह आंकड़े कम हुए है। वर्तमान में 1000 जन्म लेने वाले बच्चों में 35 बच्चों की मौत हो जाती है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में यह आंकड़ा कम होकर बेहतर स्थिति में रहेगा। इसके लिए गर्भवती महिलाओं व शिशुवती माताओं को खुद पर एवं बच्चों के देखभाल में विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
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जिला स्वास्थ्य विभाग की मानें तो जिले में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हैं। बच्चों की मौत के लिए सिर्फ स्वास्थ्य विभाग को दोषी नहीं ठहरा सकते। इस दुखद घटना का कारण गर्भवतियों की लापरवाही भी सामने आती है। गर्भावस्था के दौरान छोटी-सी लापरवाही परेशानी खड़ी कर सकती है। असावधानी से जन्म लेने वाले बच्चे की मौत व जन्म लेने के बाद बच्चा अविकसित या जन्म के कुछ दिन व कुछ माह के भीतर मौत भी हो सकती है।
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स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक जिले में सबसे ज्यादा 0 से 12 माह के बच्चों की मौत गुरुर ब्लॉक में हुई है। गुरुर ब्लॉक में चार साल के भीतर ही 109 बच्चों की मौत हुई है। बीते साल गुरुर ब्लॉक में 10, डौंडीलोहारा ब्लॉक में 15 व गुंडरदेही ब्लॉक में 18 बच्चों की मौत हुई। सबसे बेहतर स्थिति डौंडी ब्लॉक की है, जहां डेढ़ साल में मात्र 3 बच्चों की मौत हुई है। बालोद में 15 बच्चों की मौत हुई।
बालोद की शिशु रोग विशेषज्ञ की मानें तो जिले में कम वजन के बच्चे जन्म लेने की संख्या बढ़ रही है, जो चिंता का कारण है। चिकित्सक ने कहा कि गर्भावस्था के समय निर्धारित समय पर चेकअप कराना जरूरी है, जिससे जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ रहें। जिले में सबसे ज्यादा डेढ़ से 2 किलो के बच्चे जन्म ले रहे हैं। इसके लिए गर्भवती माताओं को अपने खानपान का ध्यान रखना आवश्यक है।
लो बर्थ रेट 2-5 किलो से कम के बच्चों का जन्म होना।
जन्म के समय सांस लेने में तकलीफ होना।
संक्रमण निमोनिया, पीलिया, मलेरिया हो जाना।
हाइपोथर्मिया जन्म के समय नवजात को उचित तापमान न मिलना।
गर्भ के बाद खानपान में विशेष सावधानी बरतें।
भोजन में पौष्टिक आहार शामिल करें।
वाहनों में आते-जाते समय सावधानी से बैठें, उतरें।
बच्चे के जन्म तक सफर से परहेज करें।
सीढ़ी चढऩे-उतरने से भी परहेज करें।
काम के दौरान शरीर पर अधिक जोर न दें।
निर्धारित समय पर शरीर को आराम अवश्य दें।
चिकित्सक की सलाह लेते रहें।
अस्पताल से दी गई दवाई समय पर लें।
बिना चिकित्सा सलाह के कोई भी दवाई उपयोग न करें।
सीएस व शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके श्रीमाली ने कहा कि एएनसी पीरियड की अवस्था में गर्भवती की देखभाल जरूरी है। गर्भावस्था के दो माह में रजिस्ट्रेशन कराकर टीका लगाना चाहिए। महीने में चेकअप कराते रहना है। खानपान पर ध्यान दें, पौष्टिक पोषण आहार लें, जिससे जन्म लेने वाले बच्चे व मां भी स्वस्थ रहें।
डॉ. श्रीमाली ने बताया कि जन्म के 28 दिन तक बच्चा नवजात रहता है। प्रसव के पहले और बाद में मां और बच्चे की लगातार देखभाल होनी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान 4 एएनसी जांच समय पर कराएं, जिसमें सोनोग्राफी, ब्लड व शारीरिक जांच शामिल है। गर्भधारण के तीन माह के बाद आयरन कैल्शियम का सेवन करें। समय पर स्वास्थ्य जांच से बच्चा व मां के स्वास्थ्य की स्थिति पता चलती है। सभी जांच कराते हैं, पर स्तन की जांच नहीं करा पाते। स्तन की भी जांच जरूरी है। कई बार बच्चे के दूध न पीने की शिकायत भी आती रहती है। जांच में इसका कारण पता चलेगा।
सीएमएचओ डॉ. जेएल उइके का कहना है कि जिले में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार बेहतर तरीके से हुआ है। पांच साल पहले शिशु मृत्युदर अधिक था। चार साल में सुधार आया है और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की बदौलत शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। बीते साल से इस साल स्थिति बेहतर है और सुधार किया जाएगा।
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Updated on:
24 Nov 2025 11:41 pm
Published on:
24 Nov 2025 11:40 pm
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