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मसाने में होली…मृत्यु को उत्सव बताने वाले चल पड़े मसान

श्रद्धांजलि : पद्म विभूषण पंडित छन्नूलाल की आवाज में गूंजती थी तुलसी की तपस्या, कबीर का अक्खड़पन और बनारस की मस्ती

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भारत

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ANUJ SHARMA

Oct 03, 2025

खेले मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

इन लाइनों में बनारसी ठाठ और भक्ति की निर्भय दृष्टि से मृत्यु को मुक्ति का रंगोत्सव बताने वाली भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षितिज की स्वर लहरी गुरुवार को स्वयं मसान (श्मशान) की ओर चल पड़ी। बनारस घराने के गायक, ठुमरी और भक्ति संगीत के आराधक, पद्म विभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन से बनारसी संगीत परंपरा की जीवंत आत्मा मौन हो गई।उनकी गायकी में काशी की माटी की गंध थी, गंगा की बहती धार का नाद था, और भक्ति तथा रसरंग की एक साथ गूंजती लहर थी। उन्होंने...ठुकरायो न जइयो रामा... जैसी ठुमरी में जब नायिका की वेदना को स्वर दिया, तो श्रोता मात्र दर्शक नहीं, सहभागी बन गए, जैसे प्रेम और तिरस्कार के बीच झूलता मन स्वयं गा उठा हो। वे गाते थे-होली खेले मसाने में..., तो लगता मृत्यु का भी मानवीकरण हो गया है। वे अपने अंदाज में श्मशान में भी होली का रंग घोल देते थे। इन लाइनों को उन्होंने जिस अंदाज में गाया, उससेे लगा कि यह केवल संगीत नहीं, दर्शन है। छन्नूलाल मिश्र ने सिद्ध किया कि होली केवल रंगों का उत्सव नहीं, आत्मा की मुक्ति का रंगोत्सव भी हो सकता है- चाहे वह मसाने में ही क्यों न हो।उनकी गायकी में तुलसी की तपस्या, कबीर का अक्खड़पन और बनारस की मस्ती एक साथ गूंजती थी। तभी तो लोग कहते हैं कि वे गाते नहीं थे, सुरों के माध्यम से परमात्मा का आह्वान करते थे। जब वे स्वयं मसान की ओर चल पड़े हैं, तो उनके सुर अमर हो गए और उनकी धुनें हमारी सांसों में समा चुकी हैं। छन्नूलाल नहीं रहे लेकिन उनकी गाई पंक्तियां जीवन के अंतिम सत्य को ही आलोकित करती रहेगी।

मिर्जापुर में ली अंतिम सांस

भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र का गुरुवार सुबह 4:15 बजे 91 वर्ष की उम्र में यूपी के मिर्जापुर में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार थे। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइस में उनका इलाज चल रहा था। बाद में उनकी बेटी उन्हें मिर्जापुर स्थित अपने घर ले गईं, जहां वे डॉक्टरों की निगरानी में थे।

नजर से बचाने के लिए बदला नाम

छन्नूलाल की गायकी के साथ उनके नाम बदलने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। आजमगढ़ के हरिहरपुर गांव में 3 अगस्त, 1936 में जन्मे मोहन लाल मिश्र को बचपन में घरवालों ने 'छन्नूÓ नाम से पुकारना शुरू किया। उस दौर में बच्चों की लंबी उम्र और उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए ऐसे नाम रखे जाते थे। उनकी दादी और मां भी नजर से बचाने के लिए उन्हें छन्नू कहती थी। यही नाम उनकी पहचान बन गया और मोहन लाल मिश्र से पूरी दुनिया ने उन्हें पंडित छन्नू लाल मिश्र के रूप में पहचाना।

लोकसभा चुनाव में बने थे नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक

पंडित छन्नूलाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव में प्रस्तावक रह चुके हैं। साल 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी ने जब वाराणसी से चुनाव लड़ा तो छन्नूलाल मिश्र उनके प्रस्तावक बने। पंडित छन्नूलाल को साल 2010 में यूपीए सरकार ने पद्मभूषण और 2020 में एनडीए सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। यूपी सरकार ने उनको यश भारती सम्मान के नवाजा था। पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने 2011 में आई प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षणÓ में 'सांस अलबेलीÓ और 'कौन सी डोरÓ जैसे गाने गाए थे।