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आठ कृषि उपज मंडियां, फिर भी एक भी ए ग्रेड नहीं; अनाज की ग्रेडिंग न होने से घाटे में किसान, मुनाफे में बिचौलिए

बुंदेलखंड के किसानों ने इस साल उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की, पर मंडियों की व्यवस्थाएं अब भी सी ग्रेड की पुरानी परंपरा में जकड़ी हैं। जिले की आठ कृषि उपज मंडियों में से कोई भी ए ग्रेड में शामिल नहीं है,

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krishi upaj mandi

छतरपुर कृषि उपज मंड़ी

बुंदेलखंड के किसानों ने इस साल उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की, पर मंडियों की व्यवस्थाएं अब भी सी ग्रेड की पुरानी परंपरा में जकड़ी हैं। जिले की आठ कृषि उपज मंडियों में से कोई भी ए ग्रेड में शामिल नहीं है, जबकि इसी श्रेणी की मंडियों में किसानों को फसल का वास्तविक और तर्कसंगत मूल्य मिलता है। कृषि उत्पादन में वृद्धि के बावजूद मंडियों की आय और पारदर्शिता दोनों निचले स्तर पर हैं। फल, सब्जी और अनाज की बड़ी मात्रा में आवक के बावजूद छतरपुर की प्रमुख मंडी का दर्जा सी ग्रेड से ऊपर नहीं जा सका। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका सीधा असर किसानों की आमदनी पर पड़ रहा है और फायदा बिचौलियों को मिल रहा है।

अधूरी शिफ्टिंग से रुकी आय


छतरपुर मंडी का निर्माण करीब नौ साल पहले सटई रोड पर हुआ था। दुकानों का आवंटन भी हो चुका है, फिर भी फल मंडी अब तक शहर के रामचरित मानस मैदान में अस्थायी रूप से संचालित हो रही है। रोजाना 25 से 30 ट्रक फल वहां उतरते हैं, जिससे मुख्य मंडी को मिलने वाला टैक्स नहीं मिल पा रहा। मंडी अधिकारियों का अनुमान है कि अगर फल मंडी को नियमानुसार मुख्य परिसर में शिफ्ट किया जाए, तो हर साल करीब 2 करोड़ रुपए अतिरिक्त आय बढ़ सकती है। वर्तमान में मंडी की वार्षिक आय 3 करोड़ से भी कम है, जबकि ए ग्रेड दर्जे के लिए यह आंकड़ा 3.50 करोड़ से ऊपर होना जरूरी है।

किसानों की पहुंच कम, बिचौलियों का दबदबा


गेहंू, चना, सोयाबीन, सरसों जैसी प्रमुख फसलों की नीलामी मंडी में होती है, लेकिन उचित ग्रेडिंग मशीन और गुणवत्ता मूल्यांकन न होने के कारण किसान अपनी उपज खुले बाजार या बिचौलियों को बेचने पर मजबूर हैं। प्रतिदिन केवल 35 से 50 किसान ही अपनी उपज लेकर मंडी पहुंचते हैं। कुछ किसान बताते हैं कि मंडी में असली भाव नहीं मिलता, ऊपर से वजन और गुणवत्ता की जांच में पारदर्शिता नहीं होने के कारण हमें घाटा उठाना पड़ता है।

टैक्स में भारी हेराफेरी, प्रशासन मौन


फल मंडी में रोजाना लगभग 550 टन फल की आमद होती है। नियम के अनुसार, प्रत्येक वाहन से 1.20 प्रति किलो टैक्स वसूला जाना चाहिए, लेकिन वसूली महज 70 हजार रुपए प्रतिदिन तक सीमित है। इस तरह हर साल लगभग 2 करोड़ रुपए का टैक्स नुकसान हो रहा है। सब्जी मंडी में भी यही हाल है 10 से 15 ट्रक आलू, टमाटर और हरी सब्जियों से भरे रोज आते हैं, पर हर वाहन से महज 300 से 500 की रसीद काटकर छोड़ दिया जाता है।

ए ग्रेड मंडी का मतलब सिर्फ नाम नहीं, किसानों की तरक्की


ए ग्रेड मंडी बनने पर किसानों को उपज का बेहतर मूल्य, सुरक्षित भंडारण, डिजिटल भुगतान, रसीदों में पारदर्शिता और गुणवत्ता परीक्षण जैसी सुविधाएं मिलती हैं। छतरपुर की स्थिति में सुधार आने पर न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी बल्कि जिले को राज्य की अग्रणी कृषि अर्थव्यवस्था में भी जगह मिल सकती है।

शिफ्टिंग पर अटका समाधान


फल मंडी को मुख्य परिसर में शिफ्ट करने की जिम्मेदारी नगर पालिका की है। मंडी सचिव शिवभूषण निगम ने बताया कि इस दिशा में कार्रवाई चल रही है, लेकिन प्रशासनिक अनुमति और संसाधन उपलब्ध न होने के कारण देरी हो रही है। वहीं एसडीएम अखिल राठौर ने कहा कि शिफ्टिंग का निर्णय जल्द लिया जाएगा ताकि टैक्स वसूली और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।

खेती में मेहनत किसान करते हैं, पर फायदा व्यवस्था उठा लेती है। अगर मंडियों में आधुनिक ग्रेडिंग मशीनें लगें, फल-सब्जी मंडी को नियमानुसार शिफ्ट किया जाए और टैक्स व्यवस्था पारदर्शी बने, तो छतरपुर का किसान भी अपने परिश्रम का असली मूल्य पा सकेगा और यही ए ग्रेड दर्जे का सही अर्थ भी होगा।