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वायु की ‘शक्ति’ व अचूक रणनीति- ऑन टाइम, ऑन टारगेट… एवरी टाइम

वर्ष 1971 में पाकिस्तान के आक्रामक इरादों को ध्वस्त करने से लेकर हाल ही में सीमा पार के हवाई हमलों का निर्णायक जवाब देने तक, पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र में वायुशक्ति ने लगातार अपनी शक्ति और तैयारी दिखाई है।

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वर्ष 1971 में पाकिस्तान के आक्रामक इरादों को ध्वस्त करने से लेकर हाल ही में सीमा पार के हवाई हमलों का निर्णायक जवाब देने तक, पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र में वायुशक्ति ने लगातार अपनी शक्ति और तैयारी दिखाई है। रेगिस्तानी इलाके में तैनात वायुसेना ने एयर डिफेंस सिस्टम, काउंटर सरफेस फोर्सेज, सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन में अपनी महारत साबित की है। सरहदी जिले में वर्ष 2016 में आयोजित ' आयरन फिस्ट ' और 2019 तथा 2024 के वायुशक्ति युद्धाभ्यासों में विभिन्न परिस्थितियों में हवाई ताकत की क्षमता विश्व स्तर पर प्रदर्शित हुई। स्वदेशी तकनीक से विकसित तेजस हल्का लड़ाकू विमान गरुड़ कमांडो के संचालन में भरोसेमंद भूमिका निभा रहा है। आकाश मिसाइल और पी‑4 प्रेसीजन-गाइडेड बम ने लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है।

विमानों की प्रहारक व मारक क्षमता

  • रूस निर्मित सुखोई-30, मिराज, मिग और जगुआर विमानों की प्रहारक और मारक क्षमता
  • 1300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार में राफेल सटीक निशाना साधने में सक्षम
  • रुद्र, ध्रुव और अपाचे हेलीकॉप्टर्स में जमीन और हवाई लक्ष्यों पर प्रभावी हमले करने की ताकत
  • सी-17 और सी-130 में रसद और भारी उपकरणों की आपूर्ति की क्षमता
  • चिनूक और एमआई‑17 जवानों को युद्धक्षेत्र में समय पर पहुंचाने में सक्षम
  • एम‑777 हॉवित्जर तोप सहित चिनूक हेलीकॉप्टर पर कठिन परिस्थितियों में मिशन पूरा करने का भरोसा

एयर डिफेंस और रेस्क्यू ऑपरेशन में महारत

के दौरान आकाश और समर मिसाइलें सीमांत घुसपैठ के प्रयासों का निर्णायक जवाब देने में सक्षम रही। तीन वर्ष में एक बार होने वाले वायुशक्ति युद्धाभ्यास में मिराज‑2000, मिग‑29, सी‑17, सी‑130, राफेल, तेजस, एलसीएच अपाचे, हॉक हेलीकॉप्टर, जीपीएस व लेजर-गाइडेड बम और रॉकेट लॉन्चर ने संयुक्त रूप से वायुसेना की ताकत और मारक क्षमता को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित किया। यहां ऑन-टाइम, ऑन-टारगेट और एवरी टाइम तालमेल ने एयर डिफेंस और रेस्क्यू ऑपरेशन में महारत दिखाई। गौरतलब है कि उक्त युद्धाभ्यास भारत की हवाई तैयारी, सीमांत क्षेत्र में तैनाती और संकट प्रबंधन क्षमता का आंकलन करने के लिए पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में 3 वर्ष में एक बार किया जाता है।