
उर्दू और हिंदी को बचाने के लिए मुहिम जरूरी: गुलाम नबी आज़ाद (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group)
Urdu Conference Ghulam Nabi Azad: एरा विश्वविद्यालय में आयोजित पांचवीं अंतरराष्ट्रीय उर्दू कांफ्रेंस में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने उर्दू और हिंदी भाषा को बचाने और बढ़ावा देने की अपील की। उन्होंने कहा कि आज समय आ गया है जब हमें दोनों भाषाओं के संरक्षण के लिए एक संगठित मुहिम चलानी चाहिए, क्योंकि “हिंदी जिंदा रहेगी तभी उर्दू जिंदा रहेगी। उन्होंने कहा कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब का सबसे बड़ा आधार हमारी जुबानें हैं। धर्म लोगों को उतना करीब नहीं लाता जितना भाषा जोड़ती है। “उर्दू कहीं बाहर से नहीं आई है, यह भारत की मिट्टी की पैदाइश है।
आज़ाद ने उर्दू के ऐतिहासिक विकास पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि उर्दू का असली सुनहरा दौर मिर्ज़ा ग़ालिब के समय में आया और तभी से इस भाषा ने साहित्य, कविता, शायरी और तहजीब के रूप में दुनिया भर में पहचान बनाई।उन्होंने कहा कि आज उर्दू की हालत पहले जैसी नहीं है, लेकिन अभी भी वक्त है कि इसे बचाया जा सकता है। उर्दू को आठ–नौ राज्यों में दूसरी भाषा का दर्जा तो है, लेकिन यह सिर्फ वोट लेने का तरीका बनकर रह गया है। वास्तविकता यह है कि अगर उर्दू शिक्षकों की सही नियुक्ति कर दी जाए, तो एक ही दिन में लाखों बच्चे इसे सीखने के लिए सामने आ जाएंगे।”
गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि उर्दू भाषा को सबसे अधिक लोकप्रियता देने में बॉलीवुड का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने कहा कि दो दशक पहले तक अधिकांश फिल्मी गाने उर्दू में होते थे। उन्हें लिखने वाले हिंदू और मुसलमान दोनों थे। उर्दू ने मनोरंजन जगत में अपना प्रभाव हमेशा बनाए रखा।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं में हिंदी में भाषण देने की सराहना की। उन्होंने कहा कि रूस और चीन के नेता हमेशा अपनी भाषाओं में बोलते हैं, अनुवाद में चाहे कितना भी समय लग जाए। ऐसे में जब भारत का प्रधानमंत्री अपनी भाषा में बोलता है तो इससे देश की प्रतिष्ठा बढ़ती है, कम नहीं होती।
गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि महात्मा गांधी ने उर्दू और हिंदी को “एक ही मां से जन्मी दो बेटियां” कहा था। उन्होंने बताया कि कवि अमीर खुसरो ने सबसे पहले ब्रज और संस्कृत को मिलाकर “हिंदवी” भाषा की शुरुआत की, जिसने आगे चलकर उर्दू का रूप लिया। उन्होंने प्रसिद्ध उर्दू शायरों जैसे, गालिब, अली सरदार जाफ़री, फ़िराक़ गोरखपुरी, कैफ़ी आज़मी, बेकल उत्साही और इस्मत चुगताई का उल्लेख करते हुए कहा कि उर्दू साहित्य का कोई मुकाबला नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि पहले उत्तर प्रदेश के कई शहरों में बड़ी संख्या में मुशायरे होते थे, जहां शायर रात भर अपनी रचनाएं पढ़ते थे, लेकिन अब यह परंपरा बहुत कम हो गई है।
आजाद ने अपने भाषण में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को याद करते हुए कहा कि आजादी के बाद शायद ही कोई मुख्यमंत्री उर्दू के इतना बड़ा शौकीन रहा हो। उन्होंने कहा कि बहुगुणा जी जैसे नेता बहुत कम होते हैं, जो राजनीति में रहते हुए भी सबके साथ समान व्यवहार रखते थे। रीता बहुगुणा जोशी ने कहा-उर्दू जम्हूरी जुबान बन चुकी है। कांफ्रेंस की अध्यक्षता कर रहीं पूर्व सांसद डॉ. रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि उर्दू सिर्फ भाषा नहीं, लोकतंत्र की जुबान बन चुकी है।
उन्होंने कहा,जब मैं इलाहाबाद की मेयर बनी थी, तब शपथ हिंदी, संस्कृत और उर्दू में तैयार कराई गई थी, लेकिन एक भी सभासद उर्दू में शपथ नहीं पढ़ सका। यह बताता है कि हमें अभी उर्दू की शिक्षा को मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने अवध और लखनऊ की उर्दू को दिल्ली की उर्दू से अलग बताते हुए कहा कि लखनऊ की उर्दू में अदब, नफासत और रूमानियत है, जो इसे खास बनाती है।
डॉ. जोशी ने उर्दू के अनेक महान रचनाकारों का उल्लेख किया, जिनमें शामिल हैं-
उन्होंने कहा कि जब 2016 में वसीम बरेलवी एमएलसी बने, तब उनके स्वागत समारोह में रामकथा वाचक मोरारी बापू चार्टर्ड प्लेन से आए थे। इससे उर्दू की स्वीकार्यता और लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
Published on:
01 Dec 2025 05:00 am
बड़ी खबरें
View Allलखनऊ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
