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‘आपने शक्तियों का दुरुपयोग किया…’, हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट पर ही ठोक दिया 2 लाख का जुर्माना, जानें पूरा मामला

Bombay High Court: हाईकोर्ट ने इसे प्रशासनिक शक्ति का स्पष्ट दुरुपयोग माना और कहा कि किसी हिरासत आदेश को महीनों तक लंबित रखना पूरी तरह से अनुचित है।

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Oct 06, 2025

Bombay High Court Mumbai

बॉम्बे हाईकोर्ट (Photo: IANS)

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने जलगांव जिले के एक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी हिरासत आदेश को अवैध और शक्ति का दुरुपयोग करार देते हुए रद्द कर दिया है। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह 20 वर्षीय दीक्षांत सपकाले को दो लाख रुपये का मुआवजा दे। साथ ही, यह राशि उस मजिस्ट्रेट के वेतन से वसूल करने का आदेश दिया है, जिसने दीक्षांत सपकाले के हिरासत का आदेश जारी किया था।

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस हितेन वेनेगावकर की खंडपीठ ने अपने 1 अक्टूबर के आदेश में कहा कि इस मामले में व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में रखा गया, जिससे उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ। अदालत ने इसे मनमाने और असंवैधानिक तरीके से की गई कार्रवाई बताया।

दीक्षांत सपकाले ने अपनी याचिका में दावा किया था कि जुलाई 2024 में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया हिरासत आदेश उसे तुरंत नहीं सौंपा गया। कई महीनों तक आदेश लंबित रहा और उसे मई 2025 में तब सौंपा गया जब वह एक अन्य मामले में जमानत पर रिहा हुआ। जैसे ही वह जेल से बाहर आया, उसे उसी पुराने आदेश के आधार पर दोबारा हिरासत में ले लिया गया।

अदालत ने इसे प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग बताते हुए कहा कि किसी हिरासत आदेश को कई महीनों तक लंबित रखना और उसे रिहाई के समय संबंधित व्यक्ति को सौंपना और उसी के आधार पर फिर जेल भेजना अवैध और असंवैधानिक हिरासत है।

पीठ ने टिप्पणी की कि “किसी हिरासत आदेश को महीनों तक रोक कर रखना और उसे व्यक्ति की रिहाई के समय लागू करना, शक्ति का दुरुपयोग है और असंवैधानिक है। इसलिए अवैध रूप से हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उचित मुआवजा देना आवश्यक है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैलसे में महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता सपकाले को दो लाख रुपये का मुआवजा तुरंत दिया जाए। इस फैसले को न्यायपालिका द्वारा नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा और सरकारी शक्तियों पर नियंत्रण के एक सशक्त उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।