Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

नागौर के श्रम निरीक्षकों की आईडी बंद, बाहरी जिलों को थमाया काम, श्रमिक पांच महीने से परेशान

श्रम विभाग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे उच्चाधिकारी, कमीशन देने वालों का हो रहा काम, लिखित में कोई कारण बताए बिना बंद की श्रम निरीक्षकों की आईडी, उच्चाधिकारियों की कार्यशैली पर खड़े हो रहे सवाल

3 min read
Google source verification
Labaur office

नागौर. श्रमिकों को राहत देने एवं सरकारी योजनाओं से लाभान्वित करने के लिए खोला गया श्रम विभाग का कार्यालय इन दिनों श्रमिकों की परेशानी का कारण बना हुआ है। सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय में तीन-तीन श्रम निरीक्षक होने के बावजूद उन्हें पिछले चार महीने से ‘निहत्थे सैनिक’ की तरह यहां तैनात कर रखा है। जिनके पास श्रमिकों को राहत देने का कोई पॉवर नहीं है। विभाग के उच्चाधिकारियों ने बिना किसी ठोस कारण व लिखित नोटिस के नागौर श्रम विभाग के तीनों श्रम निरीक्षकों की आईडी जुलाई 2025 में बंद कर दी और चूरू व सीकर के एक-एक श्रम निरीक्षक को पॉवर दे दिया। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सीकर के श्रम निरीक्षक ने तो अब तक कोई काम नहीं किया, लेकिन चूरू के श्रम निरीक्षक ने सितम्बर 2025 में काम शुरू किया और मात्र दो महीने में उच्चाधिकारियों के आशीर्वाद से करीब 7 करोड़ रुपए की छात्रवृत्तियां स्वीकृत कर दी।

इधर, जिले के श्रमिक सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए विभाग के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कार्यालय में उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा है। नागौर के निरीक्षकों की आईडी बंद रहने से जिले में श्रम कल्याण योजनाएं, पंजीकरण, नवीनीकरण और छात्रवृत्ति संबंधी कार्य पूरी तरह प्रभावित हो चुके हैं। स्थानीय श्रकि संगठनों का कहना है कि उच्चाधिकारियों की भूमिका की जांच कर पूरे प्रकरण को पारदर्शी बनाया जाए। श्रमिकों का कहना है कि विभाग का उद्देश्य उन्हें राहत देना है, न कि कार्य में बाधा और रिश्वतखोरी को बढ़ावा देना। लगातार बढ़ रही शिकायतों के बाद अब यह मामला राज्य स्तर पर भी संज्ञान की प्रतीक्षा कर रहा है।

श्रमिकों की पीड़ा, चूरू कैसे जाएं

जिले के श्रम विभाग के तीनों श्रम निरीक्षकों की आईडी बिना किसी लिखित कारण के बंद कर देने के कारण हजारों श्रमिकों के काम ठप पड़े हैं। श्रमिक सूरज ने बताया कि 8 जुलाई 2025 से श्रम विभाग में नए पंजीयन, पंजीयन नवीनीकरण तथा पंजीयन में नाम सुधार का काम बंद होने के कारण श्रमिक योजनाओं में आवेदन नहीं कर पा रहे हैं। कार्यालय में जाने पर कर्मचारियों की ओर से यह कहकर रवाना कर दिया जाता है कि अभी यहां से आईडी बंद है तथा आईडी चूरू से चल रही है। जबकि नागौर जिले से चूरू जिले की दूरी ज्यादा होने से सभी श्रमिक चूरू जिले के कार्यालय में जाने में असमर्थ हैं। श्रमिक रामलाल ने बताया कि श्रमिकों के लिए गांव से नागौर आना ही मुश्किल भरा होता है, चूरू जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते। श्रमिकों ने बताया कि 10 प्रतिशत कमीशन लेकर कुछ दलाल काम करवा रहे हैं, उन्हीं के काम हो रहे हैं, बाकी कई महीने से इंतजार कर रहे हैं। नागौर में तीन-तीन श्रम निरीक्षक होने के बावजूद विभाग के उच्चाधिकारियों की ओर से चूरू और सीकर के निरीक्षकों को नागौर का चार्ज देने के फैसले ने न केवल पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि कथित कमीशनखोरी को भी बढ़ावा दिया है।

उच्चाधिकारियों का अजीब तर्क

सूत्रों के अनुसार, आईडी बंद करने के पीछे उच्च अधिकारियों ने मौखिक रूप से यह तर्क दिया कि ‘नागौर में रजिस्ट्रेशन ज्यादा हो रहे थे।’ हालांकि, विभागीय कार्यप्रणाली में यह कोई मान्य कारण नहीं माना जाता, क्योंकि रजिस्ट्रेशन बढऩा कार्यक्षमता का संकेत माना जाता है। इस बीच, चूरू से लगाए गए निरीक्षक की ओर से महज दो महीने में करीब 7 करोड़ रुपए की छात्रवृत्ति स्वीकृतियां जारी करने की बात सामने आई है, जो अपने आप में कई आशंकाओं को जन्म देती हैं। वहीं, सीकर से नियुक्त निरीक्षक ने अब तक कोई काम शुरू नहीं किया।

सहायक श्रम आयुक्त ने नहीं किया ज्वाइन

इस संबंध में श्रम विभाग की श्रम आयुक्त पूजा पार्थ से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। जबकि स्थानीय श्रम निरीक्षक कुछ भी बोलने से इनकार कर रहे हैं। यहां कार्यरत रहे सहायक श्रम आयुक्त दीपक यादव का तबादला हो गया और उनके स्थान पर राकेश चौधरी को लगाया, लेकिन उन्होंने अभी तक ज्वाइन नहीं किया।

जांच की मांग तेज

स्थानीय श्रमिक संगठनों का कहना है कि उच्चाधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है, इसलिए पूरे मामले की जांच आवश्यक है। उनका आरोप है कि विभाग पारदर्शिता के बजाय भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। श्रमिकों का कहना है कि विभाग का उद्देश्य उन्हें राहत देना है, न कि रिश्वत और देरी के जाल में फंसाना। सवाल यह भी है कि आखिर बिना लिखित कारण के आईडी क्यों बंद की गईं? क्या कमीशन के खेल ने पूरे विभाग को जकड़ लिया है?