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नागौर में बढ़ रही है नशाखोरी की समस्या, 25 से 40 वर्ष की आयु वाले ज्यादा

पत्रिका अभियान : नागौर में खुले नशा मुक्ति केन्द्र - प्रभावित लोगों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई से ज्यादा उचित इलाज और सहायता की आवश्यकता, नशा छुड़ाने के लिए जरूरी है नशा मुक्ति केन्द्र, नशे की लत से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं नशा मुक्ति केन्द्र

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नागौर. नागौर जिले में नशाखोरी की बढ़ती समस्या चिंता का विषय बनती जा रही है। बड़ी चिंता इसलिए भी है कि नशे की जद में आने वाले ज्यादातर युवा हैं। जिस युवा पीढ़ी को भारत में कार्य शक्ति की धुरी माना जाता है, वो युवा नशे के जाल में जकडकऱ न केवल खुद अपंग हो रहे हैं, बल्कि दूसरों पर बोझ बन रहे हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि नशा छोडऩे के लिए जिन मरीजों को लाया जा रहा है, उनमें अधिकतर की उम्र 25 से 40 वर्ष के बीच है। यइ युवा पीढ़ी को बचाने के लिए जिला मुख्यालय पर नशा मुक्ति केन्द्र की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है, ताकि प्रभावित लोगों को उचित इलाज और सहायता मिल सके। हालांकि जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल में डॉक्टर मरीजों को परामर्श व उपचार उपलब्ध करवा रहे हैं, लेकिन जब तक सरकार के स्तर पर नशा मुक्ति केन्द्र नहीं खोला जाएगा, तब तक न तो मरीजों को राहत मिलेगी और न ही पुलिस एवं परिजनों की समस्या खत्म होगी।

रोजाना जेएलएन पहुंच रहे 25 से 30 मरीज

जेएलएन अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. राधेश्याम रोझ ने बताया कि जिला अस्पताल में हर दिन औसतन 25 से 30 मरीज नशा मुक्ति के लिए ओपीडी में आते हैं, जिन में से 3 से 4 मरीजों को भर्ती किया जाता है। ओपीडी में आने वाले मरीजों में से औसतन 20 मरीज फॉलोअप वाले और 10 से 12 नए मरीज होते हैं। नशा मुक्ति के लिए आने वाले मरीजों में सबसे ज़्यादा मरीज डोडा पोस्त, अफीम और स्मैक की लत वाले होते हैं। उसके बाद शराब, एमडी और तंबाकू के सेवन करने वाले आते हैं। नशा मुक्ति के लिए आने वाले मरीजों में सबसे ज़्यादा 25 से 40 वर्ष की आयु के मरीज आते है ।

नशा मुक्ति केन्द्र की भूमिका

नशा मुक्ति केन्द्र, जिन्हें पुनर्वास केंद्रों के रूप में भी जाना जाता है, नशे की लत से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं। यहां, लोगों को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों स्तरों पर इलाज दिया जाता है, ताकि वे नशे की गिरफ्त से पूरी तरह बाहर निकल सकें।

इन केंद्रों में दी जाने वाली मुख्य सुविधाएं

- डिटॉक्सिफिकेशन और विड्रॉल प्रक्रिया: विशेषज्ञ डॉक्टर व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य का आकलन करते हैं और नशे के कारण शरीर पर हुए प्रभाव का पता लगाते हैं। इसके बाद, नशे से होने वाली शारीरिक परेशानियों को कम करने के लिए विड्रॉल और डिटॉक्स की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

- मनोवैज्ञानिक उपचार: मनोवैज्ञानिक और परामर्शदाता मरीजों की केस हिस्ट्री और उनकी लत के कारणों को समझते हैं। वे विभिन्न थेरेपी (जैसे बिहेवियरल थेरेपी, सीबीटी) और परामर्श सत्रों के माध्यम से मरीज का मानसिक रूप से इलाज करते हैं।

- समग्र जीवनशैली में सुधार: केन्द्रों में मरीजों के लिए एक नियमित दिनचर्या तय की जाती है, जिसमें समय पर खाना-पीना और योग-ध्यान जैसी गतिविधियां शामिल होती हैं।

- परामर्श और सहायता: केन्द्रों में मरीजों को व्यक्तिगत और समूह परामर्श भी दिया जाता है, ताकि वे अपनी समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकें।

नशा छुड़ाने में नशा मुक्ति केन्द्र की बड़ी भूमिका

आमतौर पर पुलिस नशे के आदी युवकों को पकड़ती है, लेकिन पकडऩे के बाद उसे नशा छुड़ाने के लिए पुलिस का पास कोई उपाय नहीं है। इसके बाद उसे नशे के दलदल से बाहर निकालने का काम नशा मुक्ति केन्द्र का होता है, जहां उपचार और काउंसलिंग करके उसका नशा छुड़ाया जाता है। कोई भी व्यक्ति जब तक स्थाई रूप से इस दलदल से बाहर नहीं आएगा, तब तक सुधार संभव नहीं है। जिला मुख्यालय पर नशा मुक्ति केन्द्र खुलवाने के लिए जिला कलक्टर से आग्रह करेंगे।

- मृदुल कच्छावा, पुलिस अधीक्षक, नागौर