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सुप्रीम कोर्ट ने विधवा सैन्य अधिकारी के तबादले पर लगाई रोक, केरल हाईकोर्ट का फैसला पलटा

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए एक आर्मी ऑफिसर के ट्रांसफर को रोक दिया है। अधिकारी ने कहा था कि ट्रांसफर से उनके विकलांग बच्चे के इलाज और देखभाल पर असर पड़ेगा। अब मामला 16 जनवरी को फिर सुना जाएगा।

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस (International Day of Persons with Disabilities) के दिन एक केस सामने आया, जिसमें एक महिला आर्मी ऑफिसर ने अपना ट्रांसफर रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। महिला आर्मी ऑफिसर का कहना था कि यह उनके दिव्यांग बच्चे की जिंदगी और देखभाल से जुड़ा हुआ मामला है। इसलिए उसके ट्रांसफर पर तत्काल रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को मामले की सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने की और सारी दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने फिलहाल ट्रांसफर आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि अदालत ने इस मामले में अभी अंतिम फैसला नहीं दिया है और कहा है कि आगे की सुनवाई के बाद ही पूरी स्थिति स्पष्ट होगी।

सुनवाई को दौरान क्या हुआ?

अधिकारी ने बताया कि उनके दोनों बच्चों की हालत बहुत नाजुक है। दोनों बच्चों का चेकअप और थेरेपी सुविधा तिरुवनंतपुरम में चल रही है, जहां कई स्पेशल इंस्टीट्यूट और डॉक्टर हैं जो दोनों बच्चों का लंबे समय से इलाज कर रहे हैं। इसी बीच उसका तबादला हरियाणा के पंचकूला स्थित चंडीमंदिर में कर दिया गया। महिला अधिकारी का कहना था कि उसके बच्चों को तिरुवनंतपुरम जैसी सुविधाएं चंडीमंदिर में नहीं मिल पाएंगी। याचिका में महिला अधिकारी ने तर्क दिया कि यह मामला केवल सर्विस या ट्रांसफर से जुड़ा नहीं है, बल्कि एक विकलांग बच्चे के अधिकारों और सर्वाइवल से जुड़ा एक संवैधानिक और मानवीय मुद्दा भी है। सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में इस ट्रांसफर पर अगले आदेश तक रोक लगा दी। साथ ही केन्द्र से 9 जनवरी तक जवाब मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी।

अब जानिए पूरा मामला क्या है?

दरअसल, अपने ट्रांसफर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची महिला सैन्य अधिकारी का नाम लेफ्टिनेंट कर्नल सुमन टी. मैथ्यू है। वह साल 2006 से सैन्य नर्सिंग सेवा में काम कर रहीं हैं। साल 2021 में उनके पति की मृत्यु हो गई। उसके बाद से उनके दोनों बेटों की देखभाल की जिम्मेदारी अकेले उनके कंधों पर आ गई। याचिका में लेफ्टिनेंट कर्नल सुमन ने बताया कि उनका बड़ा बेटा अपने पिता की मौत के बाद डिप्रेशन, मिर्गी और बिहेवियर से जुड़ी कई समस्याओं से जूझ रहा है। जबकि छोटा बेटा बोल नहीं पाता और उसे गंभीर ऑटिज्म, 80% स्थायी विकलांगता, ADHD, दौरे पड़ने और खुद को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों जैसी दिक्कतें हैं।

डॉक्टरों ने बच्चों के लिए जारी की है सख्त गाइडलाइन

बड़े बेटे के इलाज करने वाले डॉक्टरों ने कहा कि अगर उसके रुटीन या आसपास के माहौल में थोड़ा भी बदलाव होगा तो उसके बिहेवियर मेें बदलाव दिख सकता है। इसके साथ ही उसे गंभीर दौरे भी पड़ सकते हैं। इसी बीच 4 नवंबर 2024 को मिलिट्री हॉस्पिटल तिरुवनंतपुरम (केरल) से उसका हरियाणा के पंचकूला स्थित चंडीमंदिर ट्रांसफर कर दिया गया। इस ट्रांसफर के खिलाफ सुमन मैथ्यू ने पहले केरल हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश के सामने याचिका लगाई, लेकिन केरल हाईकोर्ट ने इसे सही ठहराया। इसके बाद उन्होंने इसे केरल हाईकोर्ट की डबल बेंच के सामने रखा, लेकिन वहां से सुमन मैथ्यू की याचिका ही खारिज हो गई। इसके बाद 17 अक्टूबर को सुमन मैथ्यू ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार का उल्लंघन

याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए Rights of Persons with Disabilities Act, 2016 की धारा 9 को ध्यान में नहीं रखा। इस धारा में यह साफ कहा गया है कि दिव्यांग बच्चों को ऐसा माहौल मिलना चाहिए जहां उनकी देखभाल और इलाज में कोई बाधा न आए। साथ ही हाईकोर्ट ने सर्विस पॉलिसी को भी ध्यान में नहीं रखा, जिनके अनुसार विकलांग बच्चे की देखभाल करने वाले व्यक्ति का ट्रांसफर से छूट देने का प्रावधान है। अधिकारी की तरफ से मौजूद वकील पीयूष कांति रॉय और वकील के. गिरीश कुमार और देवराज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ट्रांसफर पर रोक लगाने का फैसला यह दिखाता है कि अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और माना है कि हाईकोर्ट ने इस मामले में जरूरी नीतियों और बच्चों पर पड़ने वाले असर को सही तरीके से नहीं देखा।