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आदिवासियों का धरती आबा: शोषण के विरुद्ध ऐतिहासिक हुंकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बिरसा मुंडा की जयंती पर देश ‘जनजाति गौरव वर्ष’ मना रहा है।

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जयपुर

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Opinion Desk

Nov 15, 2025

डॉ.किरोड़ीलाल मीणा,कृषि मंत्री,राजस्थान - अंग्रेजों ने भारत पर आधिपत्य जमाते हुए केवल शासन व्यवस्था पर ही कब्जा नहीं किया, वरन भारत की संस्कृति और धर्म व्यवस्था पर भी कब्जा करने का प्रयास किया। अंग्रेजों के भारत आगमन के साथ आए ईसाई मिशनरियों व पादरियों ने विशेषकर आदिवासी अंचल को अपनी प्रयोगशाला बनाया और बड़े स्तर पर ईसाईयत का प्रचार एवं धर्मान्तरण किया। शिक्षा के अभाव और खराब आर्थिक स्थिति की वजह से ये मिशनरी प्रारंभिक स्तर पर बहुत हद तक सफल भी हुए। ऐसे ही एक मिशनरी प्रभावित मुंडा आदिवासी परिवार में 15 नवंबर 1875 को बिरसा मुण्डा का जन्म हुआ।
उस दौर में आदिवासियों को असभ्य और जंगली समझा जाता था। बिरसा मुंडा को शिक्षा ग्रहण करने के लिए ईसाई धर्म अपनाना पड़ा, परंतु प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही उन्होंने धर्मान्तरण के मायाजाल का विरोध करना शुरू कर दिया। शीघ्र ही मुंडा सरदारों ने मिशनरियों का विरोध आरंभ कर दिया। एक सभा में एक पादरी द्वारा आदिवासियों और विशेषकर मुंडा जनजाति को तिरस्कारित करने पर युवा बिरसा मुंडा ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया, परिणामस्वरूप उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया। परंतु विद्यालय निष्कासन ने बिरसा को आदिवासियों का हीरो बना दिया। मिशनरियों के खिलाफ प्रारंभ किए गए धार्मिक, सामाजिक आंदोलनों की सफलता के बाद बिरसा मुंडा ने आदिवासी सरदारों के साथ मिलकर आदिवासियों की उन्नति और अधिकारों की रक्षा हेतु ‘सरदार आंदोलन’ शुरू किया।
जमींदारों की ओर से आदिवासियों की भूमि हड़प लेना, अत्यधिक लगान लगाकर शोषण करना आदि से सम्पूर्ण क्षेत्र के आदिवासी त्रस्त थे। सामंतों के शोषण के विरुद्ध ‘सरदार आंदोलन’ आदिवासी की आवाज बन गया और साथ में बिरसा मुंडा आदिवासियों का धरती आबा (जगत पिता) बन गया।

आदिवासी समाज अब केवल भुखमरी, गरीबी और अशिक्षा के अंधकार में डूबा था, लेकिन धरती आबा बिरसा मुंडा के रूप में उन्हें अब मजबूत नेतृत्व मिल गया था। बिरसा अब आदिवासियों को राह दिखाने के लिए उपदेश देने लगा था। धर्मान्तरण, शोषण और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन ‘मुंडा विद्रोह’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसने अंग्रेजों और सामंतों की नींव हिला कर रख दी। 9 जून 1900 को रांची की जेल में बिरसा मुंडा की रहस्यमय तरीके से मृत्यु के साथ ही आंदोलन समाप्त हुआ।
राजस्थान में भी मुंडा विद्रोह के समान ही मानगढ़ में भी आदिवासी आंदोलन हुआ। दुर्भाग्य रहा कि गरीब, किसानों, आदिवासियों के आंदोलनों और नायकों को आज़ादी के बाद लंबे समय तक न तो पहचान मिली, न ही इतिहास में स्थान। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बिरसा मुंडा की जयंती पर देश ‘जनजाति गौरव वर्ष’ मना रहा है।