28 नवंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सम्पादकीय : वर्षाजल संचय में शहरी इलाकों पर दें ज्यादा ध्यान

केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में तेलंगाना राज्य इस अभियान के तहत जलसंरक्षण कार्यों में अव्वल रहा है। टॉप टेन राज्यों में छत्तीसगढ़ दूसरे स्थान पर और राजस्थान व मध्यप्रदेश क्रमश: तीसरे व चौथे स्थान पर रहे।

2 min read
Google source verification

बरसात के पानी को विभिन्न माध्यमों से भू-गर्भ में पहुंचाने के प्रयासों के तहत केन्द्र सरकार के ‘कैच-द-रेन अभियान’ के सकारात्मक नतीजे आने लगे हैं। केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में तेलंगाना राज्य इस अभियान के तहत जलसंरक्षण कार्यों में अव्वल रहा है। टॉप टेन राज्यों में छत्तीसगढ़ दूसरे स्थान पर और राजस्थान व मध्यप्रदेश क्रमश: तीसरे व चौथे स्थान पर रहे। इस रिपोर्ट का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पिछली भोपाल यात्रा में भी किया। उन्होंने लोकमाता अहिल्या देवी का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने जल संरक्षण के लिए जो कार्य किए उन्हीं से प्रेरणा लेकर सरकार कैच-द-रेन अभियान चला रही है।
सही मायने में यह एक महत्वपूर्ण अभियान है जिसमें वाटर हार्वेस्टिंग का निर्माण प्राथमिकता से किया जाता है। कुएं, बावड़ी और तालाबों के निर्माण के साथ सूख चुकी जल संरचनाओं को पुनर्जीवित भी किया जा रहा है। इस रैकिंग में जिलों की सूची देखें तो मध्यप्रदेश का खंडवा जिला अव्वल है। राजस्थान का भीलवाड़ा दूसरे व छत्तीसगढ़ का बालोद जिला तीसरे स्थान पर है। खास बात यह है कि ये वे जिले हैं जहां पेयजल को लेकर स्थितियां कभी सामान्य नहीं रहीं। इसलिए लोग यहां जल का महत्व बेहतर तौर पर समझते हैं। क्षेत्रफल व आबादी के आधार पर ये जिले इन प्रदेशों के दूसरे बड़े जिलों से कम है। यदि बड़े जिलों व उनके मुख्यालयों को शामिल किया जाए तो शायद वे रैंकिंग में काफी नीचे रहें। क्योंकि विकास की दौड़ में ये कंक्रीट जंगल बनते जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो जल संचय का काम शहरी इलाकों के मुकाबले पहले ही बेहतर होता आया है। इसलिए बड़े शहरों व बड़े जिलों की रैंकिंग अलग से बनाने से ही पता चल पाएगा कि यहां ‘कैच-द-रेन अभियान’ ने कितनी गति पकड़ी है। भवन निर्माण में अनिवार्य शर्त के रूप में कई शहरों में रैन वाटर हार्वेस्टिंग को शामिल कर दिया गया है लेकिन ये निर्देश कागजी साबित हो रहे हैं। और तो और सरकारी इमारतों तक में इनकी पालना नहीं हो रही। हकीकत तो यह है िक ग्राउंड वाटर लेवल को कम करने में जितना योगदान ये बड़े शहर दे रहे हैं उतना वाटर री-चार्जिंग में दे रहे हैं या नहीं यह जांचना ज्यादा जरूरी है। भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट बार बार हवाला देती हैं कि अत्यधिक भू-जल दोहन से जमीन के अंदर स्थितियां बदल रही हैं जो भविष्य में भूकंप का कारण बन सकती हैं। यानी हम दोहरी आपदा की तरफ बढ़ रहे हैं। वाटर हार्वेस्टिंग को शहर सरकारों ने अनिवार्य और संपत्ति कर में छूट जैसे प्रावधान भी कर दिए लेकिन इसकी निगरानी की कोई व्यवस्थाएं नहीं हैं। यही नहीं शहरों में वाटर री-चार्जिंग के जो प्राकृतिक स्रोत हैं वे भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ रहे हैं। आम जन की भागीदारी के साथ शहरों में वाटर हार्वेस्टिंग के प्रयास किए जाएं तब जाकर ही बेहतर नतीजों की उम्मीद की जा सकती है।