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संपादकीय: कैंपस प्लेसमेंट में पेशेवर अनुशासन रखना ही होगा

वैश्विक मंदी, टेक्नोलॉजी सेक्टर में छंटनी, बाजार की अनिश्चितता वास्तविक चुनौतियां हैं, लेकिन इनका बोझ छात्रों के कंधों पर डालना किसी भी प्रकार से न्यायसंगत नहीं हो सकता।

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जयपुर

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ANUJ SHARMA

Dec 04, 2025

देश के प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थानों (आइआइटीज) ने हाल में एक कड़ा और स्वागत योग्य कदम उठाते हुए 20 से अधिक कंपनियों को कैंपस प्लेसमेंट से बाहर कर दिया है। इन कंपनियों पर आरोप है कि उन्होंने आइआइटी छात्रों को पहले ऑफर लेटर दिए और फिर जॉइनिंग से ठीक पहले उन्हें रद्द कर दिया। यह फैसला सिर्फ प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था में नैतिकता व पारदर्शिता की रक्षा का साहसिक प्रयास है।


आइआइटी जैसे संस्थानों में प्रवेश पाना ही किसी भी छात्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है। जब उन्हें किसी प्रतिष्ठित कंपनी से ऑफर लेटर मिलता है, तो वह न केवल उनके कॅरियर, बल्कि पूरे परिवार के भविष्य की उम्मीद बन जाता है। यदि वही कंपनी अंतिम समय में बिना ठोस वजह के ऑफर रद्द कर दे, तो यह केवल पेशेवर अनुशासन की कमी नहीं, बल्कि छात्रों के साथ किया गया खुला विश्वासघात है। आज का कॉर्पोरेट जगत तेजी से बदल रहा है। वैश्विक मंदी, टेक्नोलॉजी सेक्टर में छंटनी, बाजार की अनिश्चितता वास्तविक चुनौतियां हैं, लेकिन इनका बोझ छात्रों के कंधों पर डालना किसी भी प्रकार से न्यायसंगत नहीं हो सकता। आइआइटी जैसे संस्थान किसी प्रयोगशाला की तरह नहीं हैं, जहां छात्रों के भविष्य के साथ प्रयोग किए जाएं। आइआइटी की प्लेसमेंट व्यवस्था पहले से ही काफी अनुशासित और नियमबद्ध है। कंपनियों को भाग लेने से पहले कई शर्तों का पालन करना होता है। इसके बावजूद यदि कोई कंपनी अपने वादे से मुकरती है, तो उसे जवाबदेह ठहराया जाना आवश्यक है।

आइआइटी प्रशासन का यह निर्णय कि ऐसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जाए, एक मजबूत संदेश देता है कि छात्रों का सम्मान और भविष्य सर्वोपरि है। आज आवश्यकता इस बात की है कि दुनियाभर में अपनी पहचान रखने वाले आइआइटी और एनआइटी जैसे संस्थान इस तरह की नीति अपनाएं। इससे कंपनियों पर नैतिक और व्यावसायिक अनुशासन बनाए रखने का दबाव बनेगा। साथ ही छात्रों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा कि अन्याय होने पर संस्थान उनके साथ खड़ा होगा। इसके अलावा सरकार और उच्च शिक्षा नियामक संस्थाओं को भी इस दिशा में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। एक ऐसी केंद्रीय व्यवस्था विकसित की जा सकती है, जिसमें ऑफर लेटर रद्द करने जैसी घटनाओं का रिकॉर्ड रखा जाए और बार-बार ऐसा करने वाली कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया जाए। यह कदम न केवल छात्रों की रक्षा करेगा, बल्कि प्लेसमेंट प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित करेगा।


याद रखना चाहिए कि शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्रदान करना नहीं, बल्कि छात्र के भविष्य को सुरक्षित और सशक्त बनाना है। आइआइटी का यह निर्णय उसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यदि अन्य संस्थान भी इस राह पर आगे बढ़े, तो निश्चित ही देश की युवा प्रतिभा को उसका उचित सम्मान और अवसर मिल सकेगा।