भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के ताजा पूर्वानुमान में उत्तर भारत में बरसात को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है। विभाग के अनुसार सितंबर में देश में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है, जो दीर्घकालीन औसत 109 फीसदी से अधिक हो सकती है। उत्तर भारत में पहाड़ों से लेकर मैदान तक भारी बरसात ने पहले ही भारी तबाही मचा रखी है। पंजाब में सेना और एनडीआरएफ राहत कार्यों में जुटी है। वहीं दिल्ली में यमुना खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। बाढ़ और भूस्खलन के कारण हिमाचल प्रदेश को पहले ही आपदाग्रस्त घोषित किया जा चुका है, जबकि उत्तराखंड में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं से जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। ऐसे में आइएमडी का पूर्वानुमान सचमुच चिंताजनक है और स्थिति के और बिगडऩे का संकेत देने वाला है।
खास बात है कि इस संकट का प्रभाव केवल बाढ़ और भूस्खलन तक सीमित नहीं है। अत्यधिक बारिश ने कई राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिससे खाद्य संकट और महंगाई की आशंका बढ़ गई है। बाढ़ के बाद बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। हैरत की बात है कि हर साल बारिश के मौसम में ऐसी की स्थितियां पैदा हो जाती हैं और हम तैयारियां के नाम पर खुद को पहले जैसी ही स्थिति में खड़ा पाते हैं। इस संकट से निपटने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालीन दोनों स्तरों पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। तात्कालिक स्तर पर प्रभावित क्षेत्रों में राहत और बचाव कार्यों को तेज करना, चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना, और विस्थापित लोगों के लिए सुरक्षित आश्रय सुनिश्चित करना जरूरी है। बाढ़ प्रबंधन के लिए बेहतर जल निकासी व्यवस्था, नदियों के किनारों का सुदृढ़ीकरण और भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में सुरक्षात्मक उपाय किए जाने चाहिए। जलवायु परिवर्तन भी अनियमित मौसम, अचानक भारी बारिश और बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं का बड़ा कारण है। इसके प्रभावों को कम करने के लिए पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी। वनों की कटाई पर रोक, नदियों और जलाशयों की सफाई और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है। लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ानी होगी। इसके साथ ही हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा और ऊर्जा संरक्षण, प्लास्टिक उपयोग जैसे मुददों पर ध्यान देना होगा।
प्रकृति के संकेतों को नजरअंदाज करना संभव नहीं है। यदि हम प्रकृति के साथ सामंजस्य नहीं बिठाएंगे, तो ऐसी आपदाएं बार-बार चेतावनी देती रहेंगी। पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनना होगा ताकि हम प्रकृति के प्रकोप से बच सकें।केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर वैज्ञानिक अनुसंधान, तकनीकी नवाचार और सामुदायिक सहभागिता को शामिल करते हुए नीतियां बनानी होंगी। यह समय केवल राहत कार्यों तक सीमित रहने का नहीं, बल्कि भविष्य की आपदाओं को रोकने के लिए ठोस और स्थायी कदम उठाने का है।
Published on:
04 Sept 2025 01:57 pm
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