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संपादकीय : जरूरी है निर्दोष कैदियों को मुआवजे का प्रावधान

देश में आपराधिक मामलों में सजा की दर लगभग 54 प्रतिशत ही है यानी शेष 46 प्रतिशत लोग छूट जाते हैं।

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भारतीय न्याय व्यवस्था की अवधारणा है कि 100 दोषी छूट जाएं पर एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए, लेकिन लंबी कैद झेलने के बाद जब कोई निर्दोष साबित होकर बरी हो जाता है तो उसे मिली यंत्रणा का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी यंत्रणा को महसूस करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्दोष कैदियों की यंत्रणा और तकलीफ की भरपाई के लिए मुआवजा नीति बनाने की जरूरत बताई है। यह जरूरत इसलिए भी है क्योंकि गलत तरीके से भोगा गया कारावास न केवल बंदी के व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि उसे परिवार समेत सामाजिक और आर्थिक रूप से नुकसान भी पहुंचाता है।


पिछले वर्षों में ऐसे कम ही उदाहरण हैं, जिन्होंने बरी होने के बाद अपनी बेवजह भुगती सजा को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मुआवजा लेने में सफल हुए लेकिन समुुचित नीति के अभाव में वे निर्दोष बंदी मुआवजा नहीं ले पाए जो अदालत तक नहीं पहुंच पाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार को तलब कर जवाब भी मांगा हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शीघ्र ही शीर्ष अदालत निर्दोष कैदियों को लेकर मुआवजा नीति बनाने के बारे में केंद्र सरकार को ठोस दिशा-निर्देश देगा। पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें निचली अदालतों से फांसी की सजा पाए लोग बाद में बरी हो गए, हालांकि उन्हें लंबी कैद भुगतनी पड़ गई। स्पष्ट नीति बनाए जाने की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि देश में आपराधिक मामलों में सजा की दर लगभग 54 प्रतिशत ही है यानी शेष 46 प्रतिशत लोग छूट जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सबूतों के अभाव और जांच प्रक्रिया की खामियां भी इसकी वजह रहती है। ऐसे में वास्तविक दोषी भी छूट जाते होंगे, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन जो बेकसूर हैं उनको दी गई सजा तो अन्याय ही है। इसलिए वे न्याय के हकदार हैंं।


एक पक्ष यह भी है कि बिना किसी गुनाह के जेल में काटे गए लंबे समय, समाज में अपराधी की नजर से देखे जाने और संबंधित व्यक्ति के परिवारों तक को जो त्रासदी भोगनी पड़ती है उसकी भरपाई कोई मुआवजा नहीं कर सकता। मुआवजा ऐसे कैदियों को उनके निर्दोष होने का प्रमाण पत्र साबित हो सकता है। बेवजह जेल में ठूंसे जाने से उनके मान-सम्मान पर जो चोट पहुंची उस पर मरहम लगाने का काम भी होगा। हालांकि नीति में ऐसे प्रावधान जरूर होने चाहिए, जिससे सबूतों के अभाव व जांच की खामियोंं के कारण बरी किए जाने वाले अभियुक्तों और वास्तविक निर्दोषों में अंतर साफ तौर पर दिखे। केंद्र सरकार को निर्दोष कैदियों के लिए मुआवजा देने के ठोस प्रावधान करने चाहिए। साथ ही किसी भी अपराध की अनुसंधान प्रक्रिया में जुड़े उन लोगों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई का प्रावधान होना जरूरी है, जिनकी लापरवाही और जांच की खामियों से किसी निर्दोष को जेल में रहना पड़ा हो।