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एलन मस्क के एआइ सपने और धरातल की हकीकत

मस्क के मुताबिक, उस समय तक आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआइ) आ चुकी होगी, जो क्षमताओं में इंसान के समकक्ष होंगी।

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बालेन्दु शर्मा दाधीच, तकनीकी विषयों के जानकार

टेस्ला के सीईओ और इनोवेटर एलन मस्क एकदम अलग और नए क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हाल में अमरीका-सऊदी निवेश मंच की बैठक में कहा कि अगले 10 से 20 साल के भीतर पैसा मायने नहीं रखेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोट ऐसी स्थिति ले आएंगे कि इंसान के लिए काम करने की अनिवार्यता नहीं रह जाएगी। काम करें या न करें, यह एक वैकल्पिक सवाल होगा। वैसे ही, जैसे आप चाहें तो बाजार से सब्जी ला सकते हैं या अपने बगीचे में खुद सब्जियां उगा सकते हैं। सब्जियां उगाना काफी मेहनत का काम है लेकिन कुछ लोग फिर भी ऐसा करते हैं क्योंकि वह उन्हें पसंद है। जैसे वक्त काटने के लिए कुछ लोग खेल खेलते हैं और कुछ वीडियो गेम, वैसे ही कुछ लोग अगर चाहें तो काम करेंगे।


मस्क के मुताबिक, उस समय तक आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआइ) आ चुकी होगी, जो क्षमताओं में इंसान के समकक्ष होंगी। तब दुनियाभर में काम कर रहे करोड़ों कुशल रोबोट उत्पादकता का ऐसा गुबार उठाएंगे कि हमारे लिए काम करने की मजबूरी नहीं रहेगी। ऑटोमैटिक ढंग से चलने वाली दुनिया का यह सपना, एक हजार अरब डॉलर की तनख्वाह लेने वाले मस्क के लिए अमरीका के शानदार दफ्तर में बैठकर देखना आकर्षक है, लेकिन जब इसे भारत, ब्राजील या दक्षिण अफ्रीका की नजर से देखते हैं तो वह हकीकत से कटा हुआ दिखाई देता है। वह आज की कड़वी सच्चाइयों को छिपा देता है और यह भी सवाल उठाता है कि इस 'रोबोट स्वर्गÓ का फायदा किसे मिलेगा और कब मिलेगा? माना कि दुनिया में शारीरिक काम करने के लिए रोबोट होंगे और मानसिक काम करने के लिए चैटबॉट, बॉट्स या ऑटोमैटिक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, एप्लीकेशन तथा वेब सेवाएं। वाहन भी अपने आप चल रहे होंगे और बहुत सारे सिस्टम भी इंसानी इनपुट पर निर्भर नहीं होंगे। फिर भी, मस्क जिस रफ्तार से दुनिया का कायाकल्प हो जाने की कल्पना कर रहे हैं वह दूर की कौड़ी लगती है।


अब तक हुई चारों औद्योगिक क्रांतियों में से किसी ने भी रोशनी या ध्वनि की रफ्तार को मात देते हुए ऐसे परिणाम दिए हैं क्या? जेट और इंटरनेट के दौर में आज भी दक्षिण एशिया तथा अफ्रीका के देशों में किसान जानवरों के साथ हल चलाते हुए दिखाई देते हैं। हर काम करने के लिए रोबोट और एआइ एप्लिकेशंस होंगे, लेकिन उनकी पहुंच कितनी दूर तक होगी और उन्हें इस्तेमाल करना कितना सस्ता होगा? अगर मस्क की कल्पना का संसार सामने आता है तो जाहिर है कि एआइ बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार और आमदनी को प्रभावित कर चुका होगा। मस्क ने जिस तरह की अवधारणा को आगे बढ़ाया है, उसका जिक्र लेखक स्कॉटिश लेखक इयान एम. बैंक्स ने अपनी विज्ञान-कथा शृंखला में किया है जिसका नाम है 'कल्चर'। इसमें कल्पना की गई है कि सुपर इंटेलिजेंस एआइ इंसानों को काम के बंधन से आजाद कर देती है और धन-दौलत को अर्थहीन बना देती है। लेकिन यह बदलाव कैसे संभव होगा, इस पर बैंक्स की किताबें मुनासिब रोशनी नहीं डालतीं। मस्क इसके लिए 'यूनिवर्सल हाइ इनकम' नाम की अवधारणा को आगे करते हैं। उन्हें लगता है कि सरकारें लोगों को एक तय आय मुहैया कराएंगी। आठ अरब की आबादी वाली दुनिया में जहां तमाम तरह की असमानताएं, बाधाएं, नाइंसाफियां और विभाजन मौजूद हैं, क्या ऐसा कर पाना सचमुच संभव है? ऐसी स्थिति में बाजार का क्या होगा? अर्थव्यवस्थाएं कहां होंगी?


एलन मस्क की तुलना में कुछ दूसरे आइटी दिग्गजों ने एआइ से आने वाले बदलाव को थोड़ा अधिक व्यावहारिक नजरिए से देखा है। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स एआइ के कारण काम के सप्ताह को 2-3 दिनों तक कम होते देखते हैं जो काल्पनिक तो लगता है लेकिन मस्क की बातों जितना नहीं। मस्क की 'यूनिवर्सल हाइ इनकम' के बरक्स ओपन एआइ के सैम ऑल्टमैन 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' की बात करते हैं, जहां उनकी दिशा अलग है। उनका कहना है कि अगर एजीआइ की वजह से कामगार प्रभावित होते हैं तो सरकारें उनके लिए एक न्यूनतम आय की व्यवस्था करें। यह असंभव नहीं है और कुछ हद तक सामाजिक सुरक्षा जैसा ही है। अमरीका जैसे बहुत सारे देशों में नौकरी छूटने पर कर्मचारियों को सरकारी भत्ता मिलने लगता है।


अब कुछ गहरे सवाल, जिनमें से एक यह कि 'अगर कंप्यूटर और रोबोट हर काम आपसे बेहतर कर सकते हैं, तो आपकी जिंदगी का अर्थ क्या रहा?' एलन मस्क कहते हैं कि हमारी जिंदगी का अर्थ फिर भी रहेगा और वह है- एआइ को अर्थ देना (सफल बनाना)। यह बहुत हल्का और सतही जवाब है। जीवन के अर्थ के बारे में जानना है तो उन्हें भारत की ओर देखना चाहिए, हमारे दर्शन और चिंतन की ओर देखना चाहिए। और नहीं तो पश्चिमी दुनिया के महान दार्शनिकों को ही पढ़ लेना चाहिए। अगर हमारे जीवन से काम गायब हो जाए तो वह सिर्फ आर्थिक बदलाव नहीं होगा। वह इंसान के होने के मकसद को ही बदल देगा। अगर मस्क के सपनों की दुनिया आई भी तो क्या हम उसे न्यायपूर्ण और समानता पर आधारित बना सकेंगे? या फिर वह चंद अमीर देशों और अमीर लोगों तक सीमित रहेगी, जिनके लिए काम एक वैकल्पिक चीज होगा और पैसा कोई मुद्दा नहीं।