
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) इक्कीसवीं सदी की सबसे परिवर्तनकारी तकनीक बन चुकी है, जिसने उद्योगों, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों की गति को अभूतपूर्व ढंग से बदल दिया है। भारत के लिए सवाल यह नहीं है कि एआई को अपनाना चाहिए या नहीं, बल्कि यह है कि क्या हमें अपनी ‘स्वदेशी एआई’ क्षमताएं विकसित करनी होंगी।
यदि भारत आत्मनिर्भर एआई का निर्माण नहीं करता, तो जोखिम है कि हमारा विशाल डेटा विदेशी कंपनियों के पास जाएगा और वे ही उससे लाभ कमाएंगी, जबकि भारत केवल उपभोक्ता बनकर रह जाएगा। भारत के लिए तीन प्रमुख कारण इस दिशा में निर्णायक हैं। पहला, आर्थिक स्वतंत्रता और नवाचार। यदि भारत अपनी घरेलू एआई पारिस्थितिकी विकसित करता है तो इससे स्टार्टअप्स को बल मिलेगा, निजी निवेश आएगा और विदेशी निगमों पर निर्भरता घटेगी। दूसरा, सांस्कृतिक और भाषाई समावेशन। भारत की विविधता इतनी गहरी है कि एक वैश्विक एआई टूल उसकी भाषाई और सांस्कृतिक बारीकियों को नहीं समझ सकता। किसान, छात्र या लघु उद्यमी — सभी की जरूरतें अलग हैं।
स्वदेशी एआई हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी से लेकर दर्जनों भाषाओं में सेवाएं देकर डिजिटल लोकतंत्रीकरण कर सकती है। तीसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा। विदेशी एआई मॉडल में छिपे हुए जोखिम हो सकते हैं। अगर रक्षा, शासन और महत्त्वपूर्ण ढांचे विदेशी तकनीक पर आधारित होंगे तो यह पारदर्शिता और संप्रभुता के लिए खतरा बनेगा। यदि भारत निर्णायक कदम नहीं उठाता तो इसके गंभीर परिणाम होंगे — डिजिटल निर्भरता बढ़ेगी। विदेशी मॉडल भारतीय डेटा पर प्रशिक्षित होंगे और भारत को उन्हीं के उपयोग के लिए भुगतान करना होगा। आर्थिक असमानता आएगी। भारी वित्तीय शक्ति वाली वैश्विक कंपनियां भारतीय बाजार पर कब्जा कर लेंगी। डेटा सुरक्षा जोखिम बढ़ेगा। संवेदनशील नागरिक डेटा विदेश जाकर दुरुपयोग का शिकार हो सकता है। तकनीकी पिछड़ापन आएगा। जबकि एनविडिया–ओपनएआई 10 गीगावॉट जीपीयू क्षमता तक पहुंच रहे हैं, भारत के पास अभी केवल लगभग 80,000 जीपीयू हैं।
स्वदेशी एआई का असर हर वर्ग पर होगा। शिक्षा में, स्थानीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री से ग्रामीण–शहरी खाई कम होगी। कृषि और व्यापार में, मौसम, मूल्य प्रवृत्ति और ऋण सुविधा की जानकारी किसानों व छोटे उद्यमियों तक पहुंचेगी। शासन में, नागरिक सरल चैटबॉट से योजनाओं, पेंशन या सब्सिडी की जानकारी अपनी मातृभाषा में पा सकेंगे। रोजगार में, कुछ काम भले समाप्त हों, लेकिन एआई विकास, डेटा एनोटेशन और नई सेवाओं में अवसर भी पैदा होंगे। भारत को तीन मोर्चों पर तुरंत कार्रवाई करनी होगी, जिसमें पहला है डेटा और मानक। सभी एआई मॉडल को भारत में होस्ट किया जाए और डेटा स्थानीय ही रहे। दूसरा है कम्प्यूटिंग शक्ति — घरेलू जीपीयू क्षमता बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक–निजी साझेदारी आवश्यक है। तीसरा है प्रतिभा विकास। विश्वविद्यालयों और स्टार्टअप्स को इंजीनियर, नैतिक विशेषज्ञ और नीति निर्माता तैयार करने होंगे।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता कोई सामान्य तकनीकी लहर नहीं है, बल्कि भविष्य का परिभाषित मंच है। भारत के पास प्रतिभा, विशाल बाजार और डिजिटल ढांचा मौजूद है। लेकिन आत्मनिर्भर एआई के बिना देश केवल डेटा निर्यातक और सेवाओं का आयातक बनकर रह जाएगा।
स्वदेशी एआई न केवल नागरिकों को सशक्त बनाएगी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत करेगी, स्टार्टअप्स को उभारेगी और भारत को वैश्विक तकनीकी मंच पर नेतृत्व प्रदान करेगी।
Published on:
08 Oct 2025 02:48 pm
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