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सम्पादकीय : राजनीतिक दल खुद भी करें दागियों को बाहर

गंभीर आपराधिक मामलों के बावजूद सत्ता से चिपके रहने का मोह नेताओं के लिए नई बात नहीं है।

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हमारे संविधान निर्माताओं ने इस बात की शायद ही कल्पना की होगी कि दागी नेताओं को सत्ता से दूर रखने के लिए भी संविधान में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी। गंभीर आपराधिक मामलों के बावजूद सत्ता से चिपके रहने का मोह नेताओं के लिए नई बात नहीं है। इनकी इसी दुष्प्रवृत्ति पर रोक लगाने के इरादे से केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पेश संविधान संशोधन विधेयक को विचार के लिए भले ही संयुक्त संसदीय समिति को सौंपा गया है लेकिन विधेयक में जो प्रावधान किए हैं उनका दुरुपयोग न हो तो राजनीति में शुचिता कायम रखने की उम्मीद जगाने वाले हैं। इन प्रावधानों के तहत गंभीर आपराधिक मामले, जिनमें पांच वर्ष या इससे अधिक की सजा हो सकती है। उनमें गिरफ्तार होकर तीस दिन तक जेल में रहने वाले प्रधानमंत्री समेत केंद्र व राज्य के मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान प्रस्तावित है।
विधेयक में प्रधानमंत्री व केंद्रीय मंत्रियों के लिए संविधान के अनुच्छेद 75 में और मुख्यमंत्री व मंत्रियों के लिए अनुच्छेद 164 में संशोधन का प्रस्ताव है। विधेयक पेश करते वक्त इसके प्रावधानों को लेकर प्रतिपक्ष का आक्रोश भी सामने आया। लोकसभा में बुधवार को विपक्षी नेताओं ने विधेयक की प्रतियां तक फाड़ गृह मंत्री की तरफ फेंक दीं। हंगामे के बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तक ने कहा कि कुछ विधेयक राजनीति में शुचिता व नैतिकता के लिए आते हैं। प्रतिपक्ष ने यह कहते हुए विधेयक का विरोध किया कि संविधान में यह संशोधन होने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी बदले के भाव से विपक्षी नेताओं को पद से हटाने का काम करेगी। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि इसके जरिए किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री व मंत्री को झूठे गंभीर आरोप लगाकर जेल में डाल उसे पद से हटाने का रास्ता निकाला जा रहा है। विधेयक में सबसे अहम प्रावधान यह है कि तीस दिन तक जेल में रहने वाले केंद्रीय मंत्री को प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति और राज्यों के मंत्री को राज्यपाल की सलाह से मुख्यमंत्री उनके पद से नहीं हटाएं तो इक्तीसवें दिन स्वत: ही आरोपी मंत्री पदमुक्त हो जाएंगे। राजनीति में दागियों की सफाई जरूरी है। यह भी सच है कि मंत्री, मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री जैसों का गंभीर आरोपों के बावजूद पद पर बने रहना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। जेल में रहने के बावजूद मुख्यमंत्री व मंत्री की कुर्सी के मोह के उदाहरण हमारे सामने हैं।
प्रस्तावित कानून को लेकर विपक्ष की शंका अपनी जगह है और इसे पेश करने के दौरान सरकार के तर्क अपनी जगह। लेकिन जनता का पक्ष जानें तो वह राजनीति में दागियों को कतई पसंद नहीं करती। संसदीय समिति की रिपोर्ट के बाद यह विधेयक सदन में आएगा। राजनीति में शुचिता की पहल राजनीतिक दलों को करनी होगी। दागियों के ऐसे मामले सामने आने पर उन्हें खुद ही अपनी पार्टी के सत्ता में बैठे लोगों को बाहर करना होगा। दुर्भाग्यवश ऐसा होता नहीं और इसीलिए कानून के जरिए सख्ती करनी पड़ती है।