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Advanced Framing in Durg: उद्यानिकी फसलों का हब बना दुर्ग, 200 करोड़ का सालाना कारोबार…

Advanced Framing in Durg: दुर्ग जिला उद्यानिकी फसलों का मजबूत केंद्र बन चुका है। टमाटर और सब्जियों में पहले से अग्रणी यह जिला अब केले और पपीते की रेकॉर्ड पैदावार के लिए भी प्रदेश में पहचान बना रहा है।

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Advanced Framing in Durg: उद्यानिकी फसलों का हब बना दुर्ग, 200 करोड़ का सालाना कारोबार...(photo-patrika)

Advanced Framing in Durg: उद्यानिकी फसलों का हब बना दुर्ग, 200 करोड़ का सालाना कारोबार...(photo-patrika)

Advanced Framing in Durg: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला उद्यानिकी फसलों का मजबूत केंद्र बन चुका है। टमाटर और सब्जियों में पहले से अग्रणी यह जिला अब केले और पपीते की रेकॉर्ड पैदावार के लिए भी प्रदेश में पहचान बना रहा है। जिले में हर साल दोनों फसलों की कुल पैदावार 1.05 लाख मीट्रिक टन से अधिक रहती है, जिससे लगभग 200 करोड़ रुपए का कारोबार होता है।

दुर्ग का उत्पाद न सिर्फ पड़ोसी राज्यों, बल्कि अरब देशों और बांग्लादेश में भी निर्यात किया जा रहा है।जिले में 45 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल उद्यानिकी फसलों के अंतर्गत है। इसमें 1,894 हेक्टेयर केले और 1,304 हेक्टेयर पपीते की खेती होती है। बीते सीजन में केले की पैदावार 53,960 मीट्रिक टन और पपीते की पैदावार 51,299 मीट्रिक टन दर्ज हुई।

Advanced Framing in Durg: खेत पर ही खरीद लेते हैं व्यापारी

धान के वपरीत इन फसलों की खरीदी सीधे खेतों में आकर व्यापारी करते हैं। इससे किसानों को मंडी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता और परिवहन की लागत भी बच जाती है। इससे समय भी बचता है और किसान को परेशियों की सामना भी नहीं करना पड़ता। यही वजह है कि जिले के किसान अब इसी तर्ज पर सब्जी व उद्यानिकी खेती को पसंद कर रहे हैं।

अरब देशों और बांग्लादेश में अधिक मांग

दुर्ग के केले-पपीते के साथ टमाटर, शिमला मिर्च, कुंदरू जैसी फसलों की सबसे ज्यादा मांग अरब देशों और बांग्लादेश में है। देश के भीतर भी पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में दुर्ग की उपज बड़े पैमाने पर भेजी जाती है।

1,25,000 हेक्टेयरजिले का कुल कृषि रकबा
45,000 हेक्टेयरउद्यानिकी फसलों का क्षेत्र
1,894 हेक्टेयर केले की खेती
53,960 मीट्रिक टन केले की पैदावार
1,304 हेक्टेयरपपीते की खेती

ऐसे समझें पैदावार का गणित

  • पपीता नकद फसल का बेहतर विकल्प है। इस बार भी बंपर उत्पादन की स्थिति है। जिले की फसल अरब देशों समेत पड़ोसी देशों में निर्यात की जा रही है।
  • ढाबा मेघराज मढ़रियाकृषक ने कहा की पांच एकड़ में केले की खेती कर रहा हूं। व्यापारी यहां से सीधे नेपाल और बांग्लादेश तक केला ले जाते हैं। इस सीजन में अच्छी पैदावार की उम्मीद है।
  • एक पौधे पर 25-35 किलो तक फल लगते हैं। प्रति एकड़ 1,200-1,300 पौधे लगाए जाते हैं, जिससे 30-35 टन प्रति एकड़ उत्पादन मिल जाता है। केले की फसल तीन सीजन तक फल देती है।
  • एक एकड़ में करीब 1,500 पौधे लगाए जा सकते हैं। प्रति पौधा 40-50 किलो पैदावार से लगभग 50 टन प्रति एकड़ उत्पादन मिलता है। पपीता सिंचाई और देखभाल पर अधिक निर्भर रहता है।

पपीता

धान में प्रति एकड़ 16-20 क्विंटल उत्पादन से मुश्किल से 15-20 हजार रुपए शुद्ध कमाई होती है, जबकि केले—पपीते में यही लाभ 50-60 हजार रुपए प्रति एकड़ तक पहुंच जाता है। इसलिए किसान तेजी से नफेदार उद्यानिकी फसलों की ओर झुक रहे हैं।

चार गुना लाभ

केवीके डॉ. वीके जैन प्रमुख एवं कृषि वैज्ञानिक ने कहा की पाहंदा दुर्ग की जलवायु केले-पपीते के लिए बेहद अनुकूल है। पैदावार दूसरे जिलों से बेहतर रहती है। केवीके के माध्यम से किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन दिया जाता है, इसलिए यहां की फसलों की देश-विदेश में मजबूत मांग है।