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Bihar Political History: श्री बाबू के शासन में चमकता था बिहार, ‘सुशासन बाबू’ तक आते-आते कैसे बन गया बीमारू राज्य?

Bihar Bimaru State political History: बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा को उनके योगदान की वजह से उन्हें बिहारी केसरी कहा जाता है। उनके समय में बिहार की बहुत तेज गति से तरक्की हुई। लेकिन बीच के कुछ दशकों में राज्य की प्रगति का पहिया थम सा गया और इसे बीमारू राज्यों में गिना जाने लगा। आइए जानते हैं कि कैसे चमकता बिहार बीमारू राज्य में तब्दील हो गया।

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Bihar Political History

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्य के प्रथम सीएम श्री बाबू (Photo: Ians/NLC)


Bihar Bimaru State political History: नीतीश कुमार ने आज पटना के गांधी मैदान में मुख्यमंत्री पद (Nitish Kumar Sworn as CM of Bihar) की शपथ ली। वह बिहार के इकलौते नेता हैं जो 10वीं बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। उन्हें सुशासन बाबू के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि बिहार का सर्वाधिक विकास बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा यानी श्रीबाबू (Shri Krishna Sinha) के साशन में हुआ था। आइए जानते हैं कि बिहार विकसित राज्य से बीमारू राज्य में कैसे बदला?


श्री बाबू कैसे बने बिहार के पहले मुख्यमंत्री?

Bihar First Chief Minister Shri Krishna Sinha: श्री कृष्ण सिन्हा 20 जुलाई 1937 को बिहार के पहले प्रधानमंत्री बनाए गए थे। उस समय बिहार में मुख्यमंत्री नहीं प्रधानमंत्री पद का ही चलन में था। श्रीबाबू कैसे बिहार के पहले प्रधानमंत्री और बाद में मुख्यमंत्री बने, इसके पीछे भी एक बेहद दिलचस्प कहानी है।

दरभंगा महाराज और सहजानंद सरस्वती ने की थी रैली

बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह (Akhilesh Prasad Singh) ने एक इंटरव्यू में बताया कि स्वतंत्रता संग्राम का दौर था और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) भारतीय राजनीति के सर्वेसर्वा थे। उनकी जुबान से निकली बात को पत्थर की लकीर मानी जाती थी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने महात्मा गांधी से मुलाकात कर अनुग्रह नारायण सिन्हा (Anugrah Narayan Sinha) को बिहार का प्रधानमंत्री बनाना तय किया था लेकिन बिहार के बड़े किसान नेता सहजानन्द सरस्वती (Sahajanand Saraswati) और दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह (Darbhanga Maharaj Kameshwar Singh) ने पटना में किसान की एक बहुत बड़ी रैली की और उसमें लट्ठ गाड़कर यह सवाल पूछा कि बिहार में प्रधानमंत्री का पद महात्मा गांधी की चिट्ठी से कैसे तय हो सकता है? उन्होंने मंच से यह भी कहा कि यहां के एमएलए यह तय करेंगे कि बिहार का प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कौन होगा। अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि राजेंद्र बाबू (Dr. Rajendra Prasad Singh) बुद्धिमान व्यक्ति थे और उन्होंने रूख को समझते हुए श्रीबाबू को ही बिहार का प्रधानमंत्री बनाया।

श्री बाबू के शासन में हुई थी बिहार की काफी ग्रोथ

श्री कृष्ण सिन्हा बाद में 1946 में बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1961 में उनकी मृत्यु तक वह राज्य के सीएम रहे और उन्होंने बिहार की तरक्की के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। उनके कार्यकाल में राज्य की चहुमुंखी प्रगति हुई। यही वजह है कि उन्हें बिहारी केसरी भी कहा जाता है।

सरदार बल्लभ पटेल ने श्री बाबू की तारीफ में कही थी ये बात

देश को आजादी मिलने के बाद हर जगह कांग्रेस का राज्य था। श्रीबाबू के नेतृत्व में बिहार ने पहली पंचवर्षीय और दूसरी पंचवर्षीय योजना में काफी तरक्की की। बिहार में बहुत सारी जगहों पर चीनी के बड़ी मिलें शुरू हुई, विशेषकर उत्तर बिहार में तो चीनी का उत्पादन बहुत ज्यादा मात्रा में होने लगा। भारत के कुल चीनी उत्पादन में बिहार का अकेले 27% योगदान था। यही वजह है कि सरदार बल्लभ भाई पटेल (Sardar Ballabh Bhai Patel) ने श्रीबाबू की तारीफ में एक बार कहा था कि बिहार, देश का सबसे अच्छा प्रशासित राज्य है। आज की तारीख में देश में चीनी उत्पादन में बिहार का योगदान 2 फीसदी से भी कम हो चुका है।

सोशल इंजीनियरिंग के दौर में थम गया विकास का पहिया

केंद्र से लेकर बिहार तक में सवर्ण जातियां ही सत्ता के केंद्र में थी। इसके परिणाम के बतौर पिछड़ी जातियों का दमन बड़े पैमाने पर हो रहा था। बिहार में उद्योग धंधों की रफ्तार कम होने लगी और 1990 के दशक आते-आते राज्य सोशल इंजीनियरिंग के दौर में प्रवेश कर गया। लालू प्रसाद यादव (Laloo Prasad Yadav) ने इस इमोशन को समझा और उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की और मुख्यमंत्री बने। बिहार में यह पहली बार था जब ओबीसी और एससी वर्ग के लोग सत्ता में पहुंचे थे। वर्षों से दमन झेल रही जातियां अब संघर्ष के लिए तैयार हो चुकी थीं। इस संघर्ष में बिहार में खून, खराबा बड़े पैमाने पर हुए। राज्य में शिक्षा, बिजली और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी गिरावट आई। दिवंगत पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने इस दौर को जंगलराज बताया। जंगलराज शब्द लालू की सरकार के साथ नत्थी हो गया। लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के बाद नीतीश कुमार के हाथों में राज्य की बागडोर आई।

नीतीश कैसे बने सुसाशन बाबू?

नीतीश कुमार के कार्यकाल में राज्य में बिजली की व्यवस्था अच्छी हुई। अन्यथा, राज्य में बिजली जाती नहीं बल्कि कभी-कभी आती थी। राज्य के गांव-गांव में सड़कें दुरुस्त हुईं। स्कूल जाने वाली लड़कियां को साइकिलें बांटी गईं। लड़कियों को बेहतर परिणाम देने पर आर्थिक सहायता से लेकर वजीफा तक दिए गए। राज्य में शराबबंदी भी नी​तीश सरकार की पहल से हुआ। यही वजह है कि बिहार की जनता उन्हें सुशासन बाबू कहने लगी। हालांकि नीतीश के बीते कार्यकाल में एक बार राज्य की कानून व्यवस्था बिगड़ चुकी है और अपराध में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है। यही वजह है विपक्षी पार्टियां नीतीश के शासन को जंगलराज की उपमा देने लगे हैं। बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा बह चली है। पिछले कुछ सालों में राज्य में पुल के धवस्त होने की खबरें आती ही रही हैं।

डबल इंजन की सरकार में कहां रूक गया विकास?

वर्ष 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी बिहार गए। मोतिहारी में शुगर मिल के सामने उनकी सभा हुई। उन्होंने बिहार के लोगों से वादा करते हुए कहा कि मैं अगली बार जब यहां आऊंगा तो इस चीनी मिल की चिमनी से धुंआ भी निकलेगा और मैं इसी मिल के चीनी की चाय भी पीयूंगा। हालांकि आज तक यहां चीनी का उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2015 में आरा में एक चुनावी सभा में कहा था कि बिहार को 25, 50, 75, 100 करोड़ नहीं, एक लाख 25 करोड़ रुपये का पैकेज दूंगा।

बिहार को आर्थिक पैकेज देने की घोषणा कई बार, अभी भी इंतजार

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जब देश के गृहमंत्री थे तब उन्होंने बिहार को विकसित राज्यों में शामिल कराने की बात करते हुए कहा था कि बिहार को हरियाणा और पंजाब बनाएंगे। उन्होंने 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज देने की बात भी कही थी। उनका यह वादा भी भाषणों में ही सिमटकर रह गया। अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि केंद्र का पॉलिटिकल डिजाइन बिहार को एक मजदूर सप्लाई स्टेट बनाए रखने का है। अगर केंद्र के नेताओं की घोषणाएं जमीन पर उतरती तो बिहार आज बीमारू राज्य नहीं बनता। यह मुद्दा राज्य में हाल ही संपन्न हुए चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने जोरशोर से उठाया। एक बार फिर से बिहार को विकसित राज्य बनाने के बड़े-बड़े वायदे किए गए। विकास का पहिया कितनी तेजी से दौड़ेगा यह तो भविष्य में ही पता चल पाएगा।