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मातृकुंडिया बांध के डूब क्षेत्र में किसानों का आक्रोश उफान पर: धरना 19वें दिन भी जारी, महिलाएं बोलीं “अब नहीं झुकेंगे”

मातृकुंडिया बांध के डूब क्षेत्र में बढ़ते जलस्तर और खेतों में फैलते सीपेज की समस्या को लेकर किसानों का धरना रविवार को लगातार 19वें दिन भी जारी रहा।

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Farmers Agitation

Farmers Agitation

रेलमगरा (राजसमंद). मातृकुंडिया बांध के डूब क्षेत्र में बढ़ते जलस्तर और खेतों में फैलते सीपेज की समस्या को लेकर किसानों का धरना रविवार को लगातार 19वें दिन भी जारी रहा। बांध के किनारे और गेटों पर किसानों ने अपने परिवारों—महिलाओं और बच्चों सहित—डेरा डाल रखा है। भीगती मिट्टी, डूबते खेत और बर्बाद होती फसलों के बीच किसानों का गुस्सा अब उबाल पर है।

बांध का बढ़ता जलस्तर, डूबता अन्नदाता

रविवार को भी जवासिया, गुरजनिया, देवपुरिया, धुलखेड़ा सहित कई गांवों के किसान धरनास्थल पर एकत्र हुए। सुबह से शाम तक उन्होंने “जलस्तर घटाओ- किसानों को बचाओ” जैसे नारे लगाए। किसानों ने बताया कि मातृकुंडिया बांध का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे खेतों में भूमिगत जल ऊपर आने लगा है। मिट्टी में सीपेज (जल रिसाव) इतनी मात्रा में बढ़ गया है कि ट्रैक्टर तक खेतों में नहीं उतर पा रहे। किसानों का कहना है कि अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि रबी फसल की बुवाई तक संभव नहीं रह गई। कई स्थानों पर गेहूं और चने की तैयारी के लिए जुताई शुरू ही हुई थी, लेकिन बांध का बढ़ता दबाव सबकुछ तबाह कर गया।

फसलें सड़ रहीं हैं, मवेशियों को खिला रहे हैं

गांव गिलूण्ड, कुण्डिया, खुमाखेड़ा और टीलाखेड़ा के किसानों ने बताया कि उनके खेतों में अब पूरा पानी भर गया है। गिलूण्ड निवासी किसान भीखाराम मेघवाल ने बताया, हमारी खड़ी बाजरे की फसल अब खेत में नहीं, पानी में तैर रही है। उसे काटकर अब पशुओं को खिलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। कई किसानों ने कहा कि लगातार नमी और सीपेज से खेत दलदली बन गए हैं, जिससे भविष्य में भी फसलें बोना मुश्किल होगा।

बनास नदी की आवक ने बढ़ाई मुसीबत

धरने पर बैठे ग्रामीणों ने बताया कि बनास नदी में लगातार पानी की आवक के कारण बांध का कैचमेंट क्षेत्र रोजाना बढ़ता जा रहा है। पहले जहां पानी बांध की सीमाओं तक था, अब वह खेतों और घरों तक पहुंच चुका है। कई स्थानों पर कुओं से पानी स्वयं निकलकर खेतों में फैलने लगा है। किसानों का कहना है कि यह सिर्फ मौसमी नहीं बल्कि स्थायी नुकसान है, क्योंकि मिट्टी में नमी और लवणता आने से आने वाले सीजन की बुवाई भी प्रभावित होगी।

सड़कें डूबीं, गांवों का संपर्क टूटा

बांध के जलस्तर में बढ़ोतरी से गिलूण्ड क्षेत्र में पुराने खुमाखेड़ा मार्ग तक पानी पहुंच चुका है। माली मोहल्ला से मातृकुंडिया को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर बना पुल भी अब पूरी तरह पानी में डूब गया है। इससे कई गांवों का आवागमन ठप हो गया है। ग्रामीण अब खेतों तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक रास्तों और नावों का सहारा ले रहे हैं। गांगास पुल तक पानी पहुंचने से दशहरा मैदान भी जलमग्न हो गया है।

महिलाओं ने संभाली आंदोलन की कमान

धरने के 19वें दिन रविवार को महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा रही। सिर पर बाल्टियां और थाल लिए वे प्रतीकात्मक प्रदर्शन करते हुए नारे लगा रही थीं। हमारे खेत लौटाओ, बच्चों का भविष्य बचाओ। देवपुरिया गांव की कमला देवी ने कहा, सरकार कहती है विकास के लिए बांध जरूरी हैं, लेकिन अगर किसानों की जमीनें ही डूब जाएंगी तो विकास किसके लिए? महिलाओं ने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने जल्द कदम नहीं उठाया, तो वे मातृकुंडिया मंदिर परिसर में अनिश्चितकालीन आमरण अनशन शुरू करेंगी।

प्रशासनिक हलचल तेज, बैठक में उठा मुद्दा

धरने की सूचना मिलने के बाद संभागीय आयुक्त के निर्देश पर रविवार को अधिकारियों और नप्रतिनिधियों की बैठक आयोजित की गई। बैठक में किसानों के प्रतिनिधियों ने विस्तार से अपनी समस्याएं रखीं। डूब क्षेत्र की सटीक सीमा तय करने की मांग,सीपेज से प्रभावित खेतों का सर्वे, मुआवजा और राहत पैकेज की घोषणा, फसलों के नुकसान का मूल्यांकन, अधिकारियों ने मौके पर स्थिति का जायजा लेने और विस्तृत रिपोर्ट सरकार को भेजने का निर्णय लिया है।

किसानों की चेतावनी: जब तक समाधान नहीं, धरना नहीं रुकेगा

धरनास्थल पर किसानों ने एकमत होकर कहा कि जब तक बांध के सीपेज की स्थायी रोकथाम नहीं होती और प्रभावित परिवारों को राहत नहीं मिलती, आंदोलन जारी रहेगा। किसानों ने यह भी मांग की कि सरकार बांध के गेटों के संचालन का स्पष्ट नियम तय करे। डूब क्षेत्र के पुनर्वास के लिए विशेष नीति बने। सिंचाई विभाग द्वारा फील्ड सर्वे तुरंत कराया जाए।

ग्रामीणों की चिंता बढ़ी, प्रशासन पर बढ़ा दबाव

बढ़ते पानी के कारण अब घरों की दीवारों में दरारें पड़ने लगी हैं। पशुधन के लिए चारे का संकट गहराने लगा है। स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए रास्ते बंद हो गए हैं। गांवों में लोग अब रात में भी जागकर जलस्तर की निगरानी कर रहे हैं। इस बीच, प्रशासनिक टीमों ने भी मान लिया है कि यदि आवक कुछ और दिन जारी रही, तो मातृकुंडिया बांध का बैकवॉटर और गांवों को डुबा सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि

मातृकुंडिया बांध, रेलमगरा उपखंड की प्रमुख सिंचाई परियोजना है। इसका निर्माण क्षेत्र की जल आवश्यकता और खेती के लिए किया गया था। लेकिन पिछले दो वर्षों में बांध की संरचनात्मक कमजोरियां और अति जलभराव ने कई गांवों को संकट में डाल दिया है। किसानों का आरोप है कि विभाग ने डूब क्षेत्र के पुनर्वास और मुआवजा प्रक्रिया को अधूरा छोड़ दिया। अब जब पानी ने उनके खेतों को घेर लिया है, तो कोई अधिकारी सुनने नहीं आता।

जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर सवाल

किसानों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर भी उपेक्षा का आरोप लगाया है। धरने पर बैठे किसानों ने कहा कि नेताओं ने चुनावों के वक्त डूब क्षेत्र की समस्या को मुख्य मुद्दा बताया था, पर अब सब चुप हैं। एक बुजुर्ग किसान ने कहा, वोट लेते समय तो हर घर आए थे, अब हमारी पुकार कोई नहीं सुनता।

सरकारी दावे बनाम जमीनी हकीकत

सिंचाई विभाग का कहना है कि “सीपेज समस्या अस्थायी है और जलस्तर नियंत्रित होते ही स्थिति सामान्य हो जाएगी। लेकिन किसानों का तर्क है कि यह अस्थायी नहीं, बल्कि सालों से चली आ रही स्थायी परेशानी है, जो अब विकराल रूप ले चुकी है।

आंदोलन का असर: जिले में चर्चा का विषय

लगातार 19 दिनों से चल रहे इस आंदोलन ने अब पूरे जिले में राजनीतिक और सामाजिक बहस छेड़ दी है। कई सामाजिक संगठन किसानों के समर्थन में आगे आए हैं। संभावना जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में यह आंदोलन राज्य स्तर का मुद्दा बन सकता है।