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Premanand Ji Maharaj: अगर कोई आपके बारे में गलत कहे तो आप उसे जवाब क्यों नहीं देते, जानिए प्रेमानंद महाराज का जवाब

Premanand Ji Maharaj: परम पूजनीय प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि जब कोई आपके बारे में गलत बोले या आलोचना करे, तो उसे नजरअंदाज करना ही आध्यात्मिक समझ और शांति का मार्ग है। जानिए उनके अनुभव और गहन संदेश।

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भारत

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Dimple Yadav

Oct 03, 2025

Premanand Ji Maharaj

Premanand Ji Maharaj (photo- insta @bhajanmarg_official)

Premanand Ji Maharaj: हममें से कई लोग सोचते हैं कि जब कोई हमारे बारे में गलत बोले या आलोचना करे, तो हमें जवाब देना चाहिए। लेकिन परम पूजनीय प्रेमानंद महाराज जी का उत्तर यह दिखाता है कि आलोचना या नकारात्मक टिप्पणी पर प्रतिक्रिया न देना ही आध्यात्मिक समझ और शांति का प्रतीक है।

प्रश्न की पीड़ा और महाराज का सहज उत्तर

प्रश्नकर्ता ने महाराज जी से पूछा कि वे समाज और संतों का इतना सम्मान क्यों करते हैं, फिर भी जब कोई उन्हें नीचा दिखाता है या अपशब्द कहता है, तो वे चुप क्यों रहते हैं। महाराज जी ने उत्तर दिया कि अगर कोई उन्हें नीच कहता है, तो वह इसे गलत नहीं मानते। वे स्वयं भी अपने अंदर मानते हैं कि वे नीच हैं।

भगवान की कृपा ही सबसे बड़ा सहारा

महाराज जी कहते हैं कि यह दिखावे की विनम्रता नहीं है। अगर भगवान की कृपा न हो, तो वे किसी काम के नहीं रहेंगे। वे स्वयं को नीच मानते हुए भी यह जानते हैं कि वे भगवान से जुड़े हुए हैं। यही दृष्टि उन्हें आलोचना के सामने शांत और प्रेमपूर्ण रहने की शक्ति देती है।

सभी में भगवान का स्वरूप

महाराज जी के अनुसार, जो भी सुख या कल्याण किसी को मिलता है, वह स्वयं से नहीं, बल्कि भगवान की कृपा से मिलता है। इसी कारण, वे सभी में भगवान का स्वरूप देखते हैं और हर किसी को सम्मान और प्यार देते हैं। उनका मानना है कि सब रूपों में भगवान ही आते हैं, इसलिए आलोचना उन्हें विचलित नहीं करती।

दृष्टि और भावना का सिद्धांत

महाराज जी कहते हैं कि किसी व्यक्ति का दूसरों के प्रति नजरिया उसकी अपनी दृष्टि (perception) पर निर्भर करता है। उन्होंने इसे चश्मे के उदाहरण से समझाया। हरे चश्मे से सब हरा दिखता है, लाल से लाल। किसी की नकारात्मक दृष्टि उनके अपने मन की प्रतिबिंब होती है, न कि वास्तविकता।

गोस्वामी तुलसीदास की अमर चौपाई

महाराज जी ने गोस्वामी तुलसीदास की यह चौपाई उद्धृत की "जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी" इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति किसी चीज़ को उसी भाव से देखता है जो उसकी अपनी आंतरिक भावना होती है। इसलिए किसी की गलत टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देना आवश्यक नहीं।

आलोचना पर प्रतिक्रिया क्यों न दें

प्रेमानंद महाराज हमें सिखाते हैं कि आलोचना या अपशब्द को व्यक्तिगत रूप से न लें, बल्कि उन्हें भगवान की दृष्टि और अपने आध्यात्मिक अनुभव के आधार पर देखें। यही जीवन में स्थिरता, शांति और आध्यात्मिक बल पाने का मार्ग है।