
प्रतीकात्मक तस्वीर, पत्रिका फोटो
Chief Minister's Free Medicine Scheme: राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवा योजना को लेकर हजारों दावे किए जा रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि मरीजों का जीवन बचाने सहित अन्य दवाओं की गुणवत्ता भगवान भरोसे चल रही है। हृदय और बीपी रोग में जीवन बचाने वाली रेमिप्रिल सहित 6 दवाओं के सैंपल जांच में फेल हो गए हैं। औषधि नियंत्रण विभाग ने प्रदेश के ड्रग कंट्रोल ऑफिसर को जांच में फेल निकलने वाले बैच की सभी दवाओं को वापस मंगवाने के लिए निर्देश दिए हैं।
नवंबर माह के पहले सप्ताह में लिए गए सैंपल में से 6 दवाएं जांच में फेल हुई। आश्चर्यजनक बात है कि इन दवाओं में हृदय, ब्लड प्रेशर, दर्द निवारक दवा सहित 6 दवाएं शामिल है। चिंताजनक बात है कि हृदय और ब्लड प्रेशर की दवा लेने के बावजूद असर नहीं होने से दिल के दौरे का खतरा 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इनमें से संबंधित बैच की कई दवाओं की सरकारी अस्पतालों में सप्लाई की जा की गई है। औषधि नियंत्रण विभाग ने प्रदेश के ड्रग कंट्रोल ऑफिसर को जांच में फेल निकलने वाले बैच की सभी दवाओं को वापस मंगवाने के लिए निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि पिछले एक साल में नि:शुल्क दवा योजना के तहत लिए गए अधिकांश सैपल की दवाओं में तय मानक पूरे नहीं किए जा रहे हैं।
औषधि नियंत्रण विभाग ने एक से 15 नवंबर के दौरान सैंपलिंग की थी। सैंपल की जांच में विवेक फार्माकेम (इंडिया) लिमिटेड की पेरासिटामोल 650 एमजी टैबलेट बैच: पीसीटी 25092, क्योरहेल्थ फार्मास्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड, सोलन (हिमाचल प्रदेश) की सेपोडॉिक्सिम प्रोक्सेटिल डिस्परसेबल टेबलेट डीवी-सीईएफ-200 बैच: सीटी25035जी, हिमाचल-प्रदेश के सोलन की सानो-सिटो थेरेप्यूटिक्स इंक. की रेमिप्रिल 2.5 एमजी टेबलेट, बैच नबर एसडी-1457, जी लेबोरेट्रीज लिमिटेड, पोंटा साहिब की इट्राकोनाजोल कैप्सूल्स आइपी 100 एमजी बैच संख्या 1725-230, बजाज फार्मुलेशन्स, हरिद्वार की रैमिप्रिल-मेटोप्रोलोल सस्टेन्ड रिलीज टैबलेट्स (रेमरिल-एम 25/25) बैच नबर टी24 के 554 ए, देहरादून की वेद लाइफसेवर्स प्रा.लि. की रैमिप्रिल टैबलेट्स आइपी 2.5 एमजी (केडप्रिल 2.5) बैच नबर- जीवीडी 0644 शामिल है।
गोली शरीर में सही तरीके से घुलती ही नहीं है। जिससे देरी से असर होता है। तीसरे टेस्ट में दवा में अशुद्धता की जांच की जाती है। जिनका लंबे समय तक सेवन करने से 3से 5 प्रतिशत मामले में दवाओं का असर देरी से होता है।
दवाओं में औषधीय पदार्थ की गुणवत्ता एपीआई टेस्ट के जरिए की जाती है। जिसमें दवा में मौजूद घटक जांचे जाते हैं। इस टेस्ट में फेल होने पर दवा 40 प्रतिशत तक असर नहीं दिखाती है। डिसॉल्यूशन टेस्ट में दवा की घुलने का समय और प्रक्रिया देखी जाती है। जिसमें फेल होने पर संबंधित दवा पेट में नहीं घुलती है। जिससे दवा की गुणवत्ता 20 से 40 प्रतिशत तक घट जाती है।
Published on:
20 Nov 2025 10:36 am
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