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सरकारी उपेक्षा से जूझती प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर

सरकारी उपेक्षा से जूझती प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर बरमान संक्रांति मेला:तात्कालिक व्यवस्थाओं के भरोसे आयोजन

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Barman Sankranti Fair

Barman Sankranti Fair

Barman Sankranti Fair

.राज्य की प्रमुख सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक परंपराओं को अपने भीतर समेटे बरमान संक्रांति मेला इस वर्ष भी मकर संक्रांति पर नर्मदा तट के रेतघाट पर सजने वाला है, लेकिन इसकी चमक के पीछे सरकारी उपेक्षा की परतें साफ नजर आती हैं। जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित बरमान घाट पर हर साल 15 दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है। प्रशासन द्वारा संचालित यह आयोजन लगभग सौ वर्ष पुरानी परंपरा है जो समय के साथ विकसित होकर अब व्यापक आकार ले चुका है। इसके बावजूद प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर में शामिल होने योग्य यह मेला आज भी राज्य स्तरीय बड़े मेले का दर्जा पाने से वंचित है।


धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व, पर प्राथमिकता में कमी


बरमान संक्रांति मेला केवल व्यापारिक या मनोरंजन का मंच नहीं, बल्कि नर्मदा के प्रति जन.आस्था, धार्मिक परंपराओं और स्थानीय इतिहास का संगम है। मेले के दौरान दूर.दराज के राज्यों,महाराष्ट्र,गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तक से श्रद्धालु और व्यापारी यहां पहुंचते हैं। नर्मदा स्नान घाटों पर दर्शन और आसपास स्थित प्राचीन मंदिर इस मेले की ऐतिहासिक व आध्यात्मिक पहचान को मजबूत करते हैं। इसके बावजूद मेले को लेकर सरकारी प्राथमिकता बेहद सीमित है। अधिकारी और जनप्रतिनिधि केवल औपचारिक उपस्थिति तक सिमटकर रह जाते हैं। न सुविधाओं का विस्तार, न पर्यटन को बढ़ावा देने की नीति और न ही स्थायी व्यवस्थाओं पर विचार, नतीजा यह कि सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा आज भी तात्कालिक व्यवस्थाओं के सहारे चल रही है।


बढ़ा स्वरूप,बढ़ी भीड़,पर स्थायी योजना का अभाव


पिछले दशकों में मेले का स्वरूप पहले से कहीं अधिक व्यापक हुआ है। श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी है, व्यापारिक गतिविधियां विस्तृत हुई हैं और आसपास का क्षेत्र एक बड़े सांस्कृतिक केंद्र की संभावनाएं दिखाता है। लेकिन स्थायी आधारभूत संरचना, यातायात प्रबंधन, सुरक्षा, स्वच्छता और नर्मदा तट संरक्षण जैसी जरूरतों पर प्रशासन की अनदेखी लगातार बनी हुई है।


पर्यटन का केंद्र, पर अब भी उपेक्षित


नर्मदा का प्राकृतिक सौंदर्य, बरमान घाट के प्राचीन मंदिर और मेले की सांस्कृतिक विविधता इसे पर्यटन की बड़ी संभावनाओं वाला स्थल बनाते हैं। फि र भी, सरकार द्वारा इसे केवल एक वाार्षिक औपचारिक आयोजन मानकर सीमित बजट और सीमित प्रयासों के साथ निपटाया जाता है। बरमान संक्रांति मेला अपनी ऐतिहासिक गहराईए धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक विविधता के बल पर प्रदेश की अनमोल धरोहर है। लेकिन जब तक इसे राज्य स्तरीय मान्यता, योजनाबद्ध विकास और प्रशासनिक प्राथमिकता नहीं मिलेगी, तब तक यह समृद्ध परंपरा केवल आस्था और उत्साह के भरोसे ही चलती रहेगी।

पर्यटन का केंद्र, पर अब भी उपेक्षित


नर्मदा का प्राकृतिक सौंदर्य, बरमान घाट के प्राचीन मंदिर और मेले की सांस्कृतिक विविधता इसे पर्यटन की बड़ी संभावनाओं वाला स्थल बनाते हैं। फि र भी, सरकार द्वारा इसे केवल एक वाार्षिक औपचारिक आयोजन मानकर सीमित बजट और सीमित प्रयासों के साथ निपटाया जाता है। बरमान संक्रांति मेला अपनी ऐतिहासिक गहराईए धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक विविधता के बल पर प्रदेश की अनमोल धरोहर है। लेकिन जब तक इसे राज्य स्तरीय मान्यता, योजनाबद्ध विकास और प्रशासनिक प्राथमिकता नहीं मिलेगी, तब तक यह समृद्ध परंपरा केवल आस्था और उत्साह के भरोसे ही चलती रहेगी।

पर्यटन का केंद्र, पर अब भी उपेक्षित


नर्मदा का प्राकृतिक सौंदर्य, बरमान घाट के प्राचीन मंदिर और मेले की सांस्कृतिक विविधता इसे पर्यटन की बड़ी संभावनाओं वाला स्थल बनाते हैं। फि र भी, सरकार द्वारा इसे केवल एक वाार्षिक औपचारिक आयोजन मानकर सीमित बजट और सीमित प्रयासों के साथ निपटाया जाता है। बरमान संक्रांति मेला अपनी ऐतिहासिक गहराईए धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक विविधता के बल पर प्रदेश की अनमोल धरोहर है। लेकिन जब तक इसे राज्य स्तरीय मान्यता, योजनाबद्ध विकास और प्रशासनिक प्राथमिकता नहीं मिलेगी, तब तक यह समृद्ध परंपरा केवल आस्था और उत्साह के भरोसे ही चलती रहेगी।