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शहरों का हुलिया बदलने वाले उद्यम किस काम के

पत्रिका समूह के संस्थापक कर्पूर चंद्र कुलिश जी के जन्मशती वर्ष के मौके पर उनके रचना संसार से जुड़ी साप्ताहिक कड़ियों की शुरुआत की गई है। इनमें उनके अग्रलेख, यात्रा वृत्तांत, वेद विज्ञान से जुड़ी जानकारी और काव्य रचनाओं के चुने हुए अंश हर सप्ताह पाठकों तक पहुंचाए जा रहे हैं।

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पर्यटन को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयासों को तब ही गति मिल सकती है जब किसी भी शहर में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए ठहरने की बेहतर व्यवस्था हो। गुलाबी नगर से विख्यात जयपुर में जब नगर नियोजन से जुड़े अफसरों ने आबादी क्षेत्र में होटल निर्माण को अनुमति नहीं देने का बेतुका फैसला किया तो आज से ५२ बरस पहले ही अपने आलेख में इस बात पर चिंता जताई थी कि एक तरफ पर्यटकों की संख्या के हिसाब से होटलों की संख्या कम है वहीं जयपुर में इस तरह की नीतियां उचित नहीं। विश्व पर्यटन पर्यटन दिवस (27 सितंबर ) के मौके पर प्रासंगिक इस आलेख के प्रमुख अंश-

किसी शहर में जितने सैलानी आते हैं उसकी समृद्धि उतनी ही बढ़ती है। वे जब डॉलर या पौंड या रुपए खर्च करते हैं तो यह धन होटलों, मोटलों और दस्तकारी के धंधों में पहुंचता है। यह धन ही शहरों की समृद्धि में योगदान करते हैं। यह बात हो सकता है अटपटी लगे पर लंदन में विदेशी मुद्रा कमाने का सबसे बड़ा माध्यम विदेशी पर्यटक है। वहां हर साल लाखों विदेशी पर्यटक आते हैं। भारत में विदेशी पर्यटकों की संख्या लंदन के अनुपात में काफी कम है। जयपुर शहर का हुलिया बदलने का पिछले एक साल में जो उद्यम किया गया है वह तब तक सार्थक नहीं होगा जब तक कि उसे सराहने वाले उसकी सराहना नहीं कर सके। किसी सुंदर चेहरे को कोई देखने और सराहने वाला ही नहीं हो तो उसकी सुंदरता सार्थक नहीं होगी। जंगल में मोर नाचा, किसने देखा? जयपुर शहर जब खराब होने लगा तो यही शिकायत की जाती थी कि विदेशी पर्यटकों का दौर यहां कम हो जाएगा। जयपुर की खूबी यह थी कि दूर-दूर से लोग इसे देखने आते थे और अब भी आते हैं। अब इस शहर को वापस सजाने-संवारने का उद्यम हो रहा है। यह इसलिए हो रहा है ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा तादाद में यहां आएं और शहर की छटा का आनंद लें। पिछले साल यहां तक देखने में आया कि पर्यटक होटलों के दफ्तरों में रात काट रहे हैं। कोई मैनेजर के घर पर जाकर रहा है तो कोई भटक कर वापस लौट गया। जयपुर में पिछले साल (वर्ष १९७२ में) ३८ हजार विदेशी पर्यटक आए। यह संख्या अगले कुछ सालों में एक लाख पहुंच सकती है बशर्ते की शहर में उनको रहने की सुविधाएं उपलब्ध हो। अफसोस की बात है कि इस विश्वविख्यात गुलाबी नगरी में पर्यटकों के रहने के लिए मामूली सुविधाएं भी नहीं है। होटलों का नितांत अभाव है। आज तो ३८ हजार विदेशी पर्यटकों को ठहराने के लिए शहर के अच्छे होटलों में २०० कमरे भी नहीं है। ऐसी बात भी नहीं है कि होटल बनाने वाले तैयार नहीं हैं। किन्तु सरकार की नीति कुछ इस तरह की है कि वह घर आई लक्ष्मी को ठुकरा रही है।

नगर नियोजन में यह कैसी पाबंदी?

राजस्थान के नगर नियोजक विभाग का मानना यह है कि आबादी के बीच होटल नहीं बनने दिया जाए। बहुत अमीर किस्म के यात्रियों के लिए तो दूर-दूर भी होटल बनाए जा सकते हैं। मध्यम वर्ग के पर्यटकों के लिए शहर से बाहर होटल बनाना कतई व्यावहारिक नहीं कहा जाएगा। दुनिया के किसी भी शहर में ऐसा नियम नहीं है कि होटल शहर के बाहर बनाए जाएं। दुनिया के तीन बड़े शहर टोकियो, न्यूयार्क और लंदन के जिन होटलों में ठहरा, तीनों ही घनी आबादी के बीच थे। राजस्थान के मुख्य नगर नियोजक ने भी दुनिया देखी है। पर वे जयपुर में अलग ही किस्म का कानून लागू करने पर उतारू हैं। एक पांच स्टार होटल ‘क्लार्क आमेर’ शहर के बाहर बन भी गया है। लेकिन विभाग यह पाबंदी कैसे लगा देगा कि इसके आसपास आबादी नहीं बसे। बसने भी लगी है। कुछ सालों में ही देखेंगे कि आसपास का इलाका रिहायशी मकानों से भरा है।

वैभवशाली अतीत

सारा राजस्थान एक से एक बहुमूल्य पुरातत्व सामग्री से जुड़ा हुआ है। राजस्थान की यात्रा में मुझे अतीत के बड़े दुर्लभ स्मारक देखने को मिले। कालीबंगा के प्राचीनतम अवशेष भी यहां है तो जैसलमेर, देलवाड़ा, रणकपुर के ऋषभदेव का जैन स्थापत्य भी निराली छटा रखता है। और भी बहुत कुछ। अपने इस वैभवशाली अतीत की रक्षा के लिए उचित प्रयत्न नहीं हो रहा। मैं तो यह भी कहना चाहूंगा कि किसी को कोई दिलचस्पी नहीं है। जैसलमेर और किराड़ में देखा कि कितने ही बहुमूल्य पाषाण खण्ड गायब हैं। लोग चुराकर ले जाते हैं।