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Narak Chaturdashi: यमराज को प्रसन्न करने का सरल उपाय जानिए यम दीपक जलाने की सही विधि और दिशा

Narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी कको धनतेरस भी कहा जाता है। असल में यमदीपदान पर भगवान यमराज की पूजा के लिए एक छोटा दीपक जलाया जाता है।यह दीपक यमराज को प्रसन्न करने के लिए जलाया जाता है, जिससे मृत्यु से जुड़ी बाधाएं दूर हो सके।आइए जानें इससे जुड़ी कुछ जानकारियां।

2 min read

भारत

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MEGHA ROY

Oct 03, 2025

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Auspicious time to light Yama Deepak|फोटो सोर्स – Freepik

Narak Chaturdashi Yam Deepak: नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है, यह पर्व दीवाली के एक दिन पहले मनाया जाता है।इस दिन विशेष रूप से यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, को प्रसन्न करने के लिए एक दीपक (यम का दीप) जलाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन विधिपूर्वक और श्रद्धा से दीप जलाने से अकाल मृत्यु, विपत्तियां और बाधाएं दूर हो जाती हैं।अगर इस दिन सही विधि और श्रद्धा से यम का दीप जलाया जाए, तो यमदेवता प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को दीर्घायु व आरोग्यता का आशीर्वाद देते हैं।आइए जानें यमराज से जुड़ी कथा, पूजा-विधि, और इस दिन से संबंधित पूरी जानकारी।

Narak Chaturdashi की तिथि (Narak Chaturdashi Date)

दृष्टि पंचांग चांग के अनुसार, नरक चतुर्दशी कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है। इस वर्ष चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 19 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे 51 मिनट पर होगी और इसका समापन 20 अक्टूबर को दोपहर 3 बजे 44 मिनट पर होगा।

छोटी दिवाली का शुभ मुहूर्त (Narak Chaturdashi Muhurat)

छोटी दिवाली के दिन पूजा-अर्चना का शुभ मुहूर्त भी विशेष महत्व रखता है। 19 अक्टूबर को रात 11 बजकर 41 मिनट से लेकर देर रात 12 बजकर 31 मिनट तक यह शुभ मुहूर्त रहेगा।

यम दीपदान की विधि और दिशा

  • समय: संध्या काल (गोधूलि बेला) में।
  • स्थान: मुख्य द्वार के बाहर, दाईं ओर।
  • दिशा: दीपक को दक्षिण दिशा की ओर रखें क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है।
  • दीपक: तिल के तेल का दीपक, जिसमें चार मुख वाले बत्ती का प्रयोग करें।
  • संकल्प: “हे यमराज! इस दीपदान के माध्यम से मैं आपके प्रति श्रद्धा अर्पित करता हूं , कृपया मुझे और मेरे परिवार को अकाल मृत्यु और नरक के भय से मुक्त करें।”

"यम दीपम 2025 की स्टोरी

कहानी के अनुसार, राजा हिमा के बेटे की कुंडली में लिखा था कि उसकी मृत्यु विवाह के चौथे दिन हो जाएगी। उस दिन उसकी पत्नी ने कमरे के द्वार पर अपने सभी सोने-चांदी के गहने रख दिए और पूरे घर में दीपक जलाकर जागरण किया। वह पूरी रात गाती रही और अपने पति को कहानियां सुनाती रही।
जब यमराज सांप के रूप में आए, तो गहनों की चमक से उनकी आंखें चकाचौंध हो गईं और वे भीतर प्रवेश नहीं कर सके। वे गहनों के ढेर पर चुपचाप बैठकर रातभर गीत सुनते रहे और सुबह लौट गए।पत्नी की सूझ-बूझ और प्रेम ने पति की जान बचा ली। तभी से हर वर्ष धनतेरस के दिन 'यमदीपदान' की परंपरा शुरू हुई, जिसमें घरों के बाहर दीप जलाकर यमराज को समर्पित किए जाते हैं, ताकि परिवार को दीर्घायु, आरोग्यता और सुख-समृद्धि का वरदान मिले।